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ध्यानकल्पतरू.
द्वितीय प्रतिशाखा - " धर्म ध्यानीके लक्षण "
धम्म सर्ण झाणस्स चत्तारी लवणा पद्मंता तंज्जहा - आणारुइ, नीसग्गरुइ, उवदेंसरुइ, सुत्तरुइ,
अर्थम् — धर्म ध्यानके ध्याता को पहचानने के चार लक्षण है. १ जिनाज्ञापे रूची होयसो अज्ञा रुची. २ जिनज्ञान के अभ्यासपे रुची होय सो निसग्गरुत्री. ३ सोध श्रवण करनेकी रुची सो उपदेश. रुची. ४ जिनागम श्रवण करनेकी रुची सो सूत्र रुची
रुची नाम उत्कृष्ट इच्छा का है, जैसे- कामी कों कामकी. दामी को दाम की नामी कों नाम की, क्षु दित को अन्नकी, त्रषित कों जलकी. समुद्रमें पडे को झाज की. रोगी को औषधी की. रस्ता भूले कों साथ की. इत्यादी कार्यार्थिक कों कार्य पूर्ण करने की, स्व भाविक इच्छा होती है; वो कार्य पूर्ण न होवें वहां लग मनमें तलमल लगी रहे, कार्य पूर्ण होणेसें अत्यं