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तृतीयशाखा-धर्मध्यान १६५ कपटसे, फलकी इच्छासे दान देवें, दान दे अभीमान करें, सो अंतरद्विपमें मिथ्यात्वी जुगलिया मनुष्य होवें. __ ५७ प्र-जुगलिया (भोग भूमीये) मनुष्य कायसें होवे ? उ-शुद्वाचारी साधूओं को हुल्लास भावसें शुद्ध आहार, स्थान, वस्त्र, पात्र, देवे, दूसरेके पाससे दिलावे. अन्य को देते देख खुशहोवें सो अकर्म भूमी मे समद्रष्टी जुमलिया होवें. __ ५८ प्र-अनार्य देशमें जन्म कीस कर्मसे लेवे? उखोटा आलचडावे, म्लेच्छो की सुख संपदा अच्छी लगे, म्लेच्छ वेश धारे, म्लेच्छ कामों की परसंस्था करें, आर्यदेश छोड अनार्यमें रहे, सो आनार्य देश में जन्मलें. . ___ ५९ प्र-आर्य देशमें कायसे जन्में ? उ-आर्यों की चाल चलन पसंदकरे. अनार्य रिवाज कामें छोडे, अनार्य को आर्य बनावें, 'मुनी (साधू) की परसंस्था करे, आर्यों को यथा शक्त सहायता करे, तो आर्य देशमें जन्मलेवे. ..
६० प्र-हम्माल कायसे होवे ? मनुष्य, पशु ओं पे गजा (शक्ती) उप्रांत बजन लादे बेगारमें पकडे, ज. बरी से काम लेवें, थोडाकहे बहुत वजन भरें, ज्यादा उठाया देख हर्षावे, तो हम्माल, पोठीया, बेल, घोडे