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ध्यानकल्पतरु.
र्यमें प्रवृते तो पांव हीन लंगडा पांगला होवे.
१२ प्र - पांक्की प्रबलता कायसे पावे? उ-कूरस्ते जावे नहीं, अन्य जातेको बचावे. सजीव पदार्थपे पांव न दे, लंगडे पांगुलेकी सहायता करे, तो निरोगी बलिष्ट पांव पावे.
१३ प्र - निर्धन ( दरिद्री ) कायसे होवें ? उ- चोरीसे दगासे, धूर्तासे, ठगाइसे, जुलमसे हिंशकारी कुवैपारसे द्रव्योपारजन करे, ( धन कमावे) धनेश्वरोंपे द्वेष करे, उनको निर्धन बनाना चहावे, मेहनतसे स्वल्प धन कमाया उसे लूटे, घर, अन्न, वस्त्र, सें दुःखी करे, गरीबोंकों वाक्य प्रहार करे, झूटा आल दे फसावे. अ जीवकाका भंग करे, तथा साधू होके धन रक्खे, दूसरेके कमाइमें अंतराय दे, थापण दबावे तो निरधन होवे, और किसीका धन अग्नीमें जलावै तो उसकाभी आग (लाय) में जले, पानी में डूबावे तो झाजादी पाणीमें डूबे. इत्यादी जिस तरह दूसरे के द्रव्यका नाश करे, वैसे ही उसके द्रव्यका नाश होवें.
१४ -- धनेश्वरी कायसे होय ? उ-निरधनों (दारि द्रियों) की दया करे, उनकी सहायता करे, अन्यकी seat देख हर्षावें. प्राप्त द्रव्यपे ममत्व कम कर, दान, पुण्य धर्मोन्नती, अनाथोंकी सहाय इत्यादी सूकृ