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१५० ध्यानकल्पतरू. मोहका नाश किया. उसी वक्त ७ मंडिकोमेंसे ज्ञाना. वरणिय, दर्शनावर्णिय, और अंतराय इन तीनोका स्वभाविक नाश होगया. उसी वक्त आकाशमें सब देवता ओंने जय २ कार किया. श्रेष्ट द्रव्यकी वृष्टी करी. देव धुंदवी बजने लगी. चैतन्य महाराज को कैवल्य ज्ञान कैवल्य दर्शन रूप महा ऋधी की प्राप्ती हुइ. और तीनही लोकमें चैतन्यकी आण दुवाइ फिर गइ. सर्व जक्तके वंदनिय पूज्यानय चैतन्य महाराजा हवे. .. विवेक मंत्रीश्वर की सल्लासे, चैतन्य रायका स ब काम सिद्ध हुघा जाण, सब परिवारसे संयम मेहल में परमानंद भोग लगे, एक दिन विवेकचन्द्रजी बाले स्वामी आपके इष्टितार्थ सिद्धीसे मै बडा खुश हुवा. हूं. और आप सर्वज्ञ सर्व दर्शी हये. इस लिय मै आपको किसी प्रकार सल्ला देनेभी असमर्थ हूं, आप जा नते ही होके आपके चार शत्रू आपसे मिले हुये हैं. उनकाभी कूछ विचार ?
.. दैतन्य महाराजा बोले कुछ विचार नही. वो बेचार नीबल होके पडे हैं, और बोलो कुछ करते हैं, सो जगजीव का सला होवे, पैसाही करते हैं. मुजे उनसे कुछ हरकत नहीं हैं. आयुष्य,नाम, गौत्र, और साता वेद निया, ये सब एक आयुज्य के आधार से टिके हैं।