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तृतीयशाखा-धर्मध्याम.
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संबुडता रूप चारो तर्फ बंदोबस्त कर, संपूर्ण भविता त्म रूप मद छक हो. महाज्ञान बार्जित्रोंके झणकार सें, महाध्यान निशाण फररीते, महा तप तेज कर दीपते, अमोह अधिकारी पणे. अपडवाइता द्रढताधार क्षपक श्रेणि रूप चौगानमें सब परिवारसे परघरे खडे हुवे चैतन्यको ऐसे ठाठसे सामे खडा देख, मोह मद छक हो बोला, रे चैतन्य ! तूं मेरे घरमें बडा हुवा, अनंत काल मेरी सेवामें तुजे हुवें, निमक हरामी ! अब मेरे सेही लडने तैयार हुवा, यह तुजे जो ऋधि प्राप्त हुइ हैं. सो सब मेराही पुण्य प्रताप हैं; ऐसी २ ऋद्धि तुजे पहले केइ वक्त मिली, और तूं केइ वक्त मेरा सामना किया. अनंन वक्त तेरी मैने क्ष्वारी करी. तो भी तूं नहीं शरमाय और सब बीती भूल, मेरा सामना कर ता है. लिहाज कर २ शरमा आयतो जरा !!
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चैतन्य - हांजी मेरी लाज को गमा, अनंत का लसे मेरी फजीती करनेवाले आपको अब मैने पेछाने, तबही मुजे लिहाज पैदा हुई तबही तुमारे सर्व परिवार का नाश कर तुमरे सामे अडग खडा हूं. तुभे भी मरनेका शोक हुवा हैं. जो सबका नाश देखते ही मेरे सामे आये हो, तो संभालिये. इना कहतेही चैतन्यने मोहके मस्तकों क्षायिक खड्गका प्रहार कर