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ध्यानकल्पतरु.
राय, क्रोधका क्षमाचंद्र, मानका मार्दव सिंह, दगाका अर्जव प्रसाद, एक क्षिणमें नाश कर डालेंगे. इतना सु णतेही सर्व राजिंद्रो सजहो १८००० सिलांग रथ के झणझणाट करते सन्मुख हुवे. नवबाड संग्घीन शैन्यके कोटसे घेरे हुये, वैराग्य बाणो की मेघ धारा परे वृष्टी होतेही, कामदेव मृत्यु पाये. उनके तीनही उमराव भ ग गये. उदर क्षमाचंद्रने क्रोधका, मार्दव सिंहने मान का, और अर्जव प्रसादने दगाका नाश किया. चैतन्यकी शैन्यमें जय २ कार हुवा. चैतन्य निर्विषयी बन शांत सरल हो पर्मानंद भोगवने लगे.
मोह नृप, प्यारे पुत्र और तीनो बलिष्ट उमरावोकी मृत्यु सुन मूर्छा खागये. हाय शहा करने लगे. लाल आँख कर कहने लगे. अब ये खुषही चैतन्य का नाश करूंगा ! तब 'लोभ राय' मोठे आप जैसे महाराजाको, बैलव्य जैसे बच्चे के सामे जाना लाजम नहीं है, मैंने एक उपाय विचारा है, में वह है की चै तन्य को 'उपशम मोह ने देने लोभ दे वो, उसमें गया की उस गुप्त रहे हुये अपने सुभट उसकी सव शैन्यका नाहा कर, आपके सों कर देंगे. यह शला मोहको पसंद पडी और कहा जल्दी करो. की तुर्त लोभचंद्र सज हुये. उन्हके साथ होस, रत्य,