________________
મ
ध्यानकल्पतरू.
प्राप्त हुये, चैतन्यकी जीत हुई, और मोह तो अत्यंत दिलगीर हो कहने लगे की, अबके चैतन्यसे फते पानी मुशकिल हैं. तब 'प्रमाद सिंघजी' हंसते २ बोले. ऐसे ढोंग चैतन्यने केइ वक्त किये है. मैने पूर्वधारी महा मुनीयोंको भी नर्कगामी वना दिये तो इस निवारे की क्या गिनती ! दक्षिणके बदल ज्यों वायू बिखेरता है. त्योंमें अथ्बी चैतन्यकी सब शैन्य भगा देता हूं, ऐसा गरुर करते, पांच उमराव, और केइ शुभटों से परवरे, चैतन्य सन्मुख हो कहने लगे. के अब मेरे आगेसे भगके कहां जाया. तेरे घमंड को अन्धी नष्ट करता हूं. तब विवेक बोले, इनको भगाने उपशम रावजी स्मर्थ हैं, के उपरामराव तुर्त पंच अप्रमादरूप पांच उमराव और केइ सुभटों साथ. प्रमादके सन्मुख हुवे. प्रणाम धारा रूप गोलीको वर्षाद से प्रमादका पतन किया, की चैतन्य ध्यानमें लीन हो सुखी हुवे.
मोह, प्रसाद रावका मृत्यु सुन, होंस हवास भूल गये. तब कामदेव बोले, पिताजी मेरे जैसे प्राक भी पुत्र आपके होतें आप फिक्र क्यों करते हो, अबातही बात चैतन्यको कुब्जमें कर लाता
कैंसर साक्षेप के
at
इ
-7-7