________________
तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १४३ तब चैतन्यसे विवेक-बोला देखीये श्वामी यह मोहका मानेता प्रधान मिथ्यात्व है, यह सम्यक्त्व प्रधान जीकी द्रष्टीमात्रसेही मर जायगा. इसके मरनेसे मोहकी सब शैन्य स्थिल होजायगी, और अपनी श्रधा नगरी निर्विघन होजायगी. यह सुन 'सम्यक्त्व' मंप्रश्वर पांच समकित महा जौधे और शैन्य साथ मिथ्यात्वके सन्मुख हों. तत्वातत्व विचार रूप वाण छोडतेही मिथ्यात्वका सपरिवार नाश होगया. चैतन्यकी शैन्यमें जीत नगारा बजा. और मोह तो अति बलिष्ट मंत्रीके वियोगसे अत्यंत खदित तब 'अवृत्तराय' मोहसे बोले. आप फिकर न कीजीये. अब्बी मै प्रधानजीका बदला लेता हूं. वि. चारा चैतन्य, मेरे आगे क्या करेगा. ऐसा कहे, बारे उमरावोंके साथ चैतन्यके सन्मुख आ कहने लगे. रे! चैतन्य ऐसे तेरे ढोंगोंको मैंने बहुधा नष्ट किये तो भीतूं सामे होता नहीं शरमाया,आ देख मजा.
तब चैतन्यसे विवेक बोले इसे जीतने समर्थ अपने सर्व वृतिराय हैं. वो इसका क्षिणमें नाश कर संयम मेहलको निर्विघन कर देंगे. यह सुण 'सर्व वृत राय' तेरे चारित्र और अनेक शुभ प्रणाम सूभठोंसे प्रवरे. वैराग्य बाणके वृष्टीसे अवृत जी काल धर्म