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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १४५ . शक यह तीनही उमराव खडे हो कहने लगे की हम कुँवर साहेबके मदतमें जाते हैं. चैतन्यका घमंड एक क्षिणमें गमाते हैं. तव अश्वाधिप क्रोधजी, खडे हो धमधामायमान होते बोले. किसने जननी का दूध ८चाया की है की, जो मेरे सन्मुख खडा रहे. क्रोध राग-द्वेष, कलह-चंड, भंड विवाद यह सुभटके सामे टिके तब गजाद्विप अभीमानजी बोले, मैने केइ वक्त चैतन्यको हीन दीन, बना दिया है, क्या अविनय मान मद, दर्प, स्थंभ, उत्कर्ष, गर्व, यह मेरे सुभटोंका प्रा. क्रमी कमी है. तब रथा द्विप कपटजी कहने लगे से ने चैतन्यको केइ वक्त लेंगे, लुगडे, चुडीयों पहनाइ हैं, अब क्या छोड दूंगा. माया, उपाधी, कृती, गहन, कुड वंचन, यह मेरे सुभट कम प्राक्रमी है क्या.? यों यह तीनही स-परवार, कामदेवके साथ हुये, इनसे कामदेवका ठाठ सबसे अधिक हुबा, अनुराग रणसिंग्या बजाते. एकदम चैतन्यपे विषय रागरूप बाणोका बर्षाद सुरू किया, कोधजी ज्वालामय बाण छोडने लगे, अभीमान जी स्थंभन विद्या डाली, दगाजी गुप्तरीत क्षय करने प्रवृत हुये; यह अविमासा एकदम जुलम होता देख, चैतन्यसें विवेक बोले आप घबराइये नहीं; - शांती ढालकी ओटमें विराजे रहो. कामदेवको निर्वेद