________________
११२
ध्यानकल्पतरू. रहा हैं. मेरे जब्बर पुन्य है, की श्री जैन धर्मका ज्ञान मुजे प्राप्त हुवा. सुयगडायंग सूत्रमें फरमाया है की “एयं खु गाणीणो सारं, जन हिंसइ किंचणं" अर्थात् निश्चय से ज्ञान प्राप्त करनेका सार येही है की, किंचित मात्र जीवकी हिंशा नहींज करना! इस लिये अब मै, सब जीवोको त्रिजोगकी विशुद्धी से अभय दानका दाता बनू. सबके वैर विरोधसे निवृतं के फिर मुजे मोक्षमे जाते कोइभी किसीप्र कार की हरकत करनें समर्थ न होय, दयाही मोक्ष का सच्चा हेतू हैं.
"बन्ध, कर्म बन्धनसे छूटनेसेही जीव को मोक्ष मिलता है, इस लिये मुमुक्षू को बन्धका स्वरूप जाणने की आवश्यकता हैं वह बन्ध के कारण सुत्रमें ४ बताये हैं. सो-“पयइ ठिइ'रस'पएसा" अर्थात् १ प्रकृती बन्ध, २ स्थिती बन्ध, ३ अनुभाग बन्ध, ४ प्रदेश बन्ध, देनेसे कोइ गिनतीमें नहीं लाता है, औरवडेको गाली देने से बड संकटमें पड़ जाता है, तैसे. तथा जिनी उच्च स्थितीको प्राम हुव है, उत्नेहो आत्म कल्याण के नजीक आये. उनको, मारनेसे उन के आत्म कल्याण का जब्बर नुकशान करना है, तथा