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१२४ . ध्यानकल्पतरू.. ओर शास्त्रका किसी सत्संग करके यथार्थ समज जाय की यह खोटा है परंतु लोकोंकी कूलगुरूओंकी शरम मे पड उन्हे छोडे नहीं; बिचारे की जो में इसे छोड देबुंगा तो मेरे गुरु और मित्रों स्वजनो मुजे ठपका देंगे, निंदा करेंगे, और इस महजब के तो ह्यां बहुत लोक हैं, मुजे आगेवानी कर रखा है. सबमेर हुकम में चलते है. मेरा मान महात्म खूब बडा है. जो मै इसे छोड, देवू तो सब बदलके निंदा अपमान करेंगे. इत्यादि वि चार से खोटे को खोटा जाणता हुवा ही छोडे नहीं; अपना जन्म काली धार डुब रहा है, उसका उसे विलकुल फिकर नहीं ऐसे भारी कर्मी जीवको अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी कहना. ... ४ “संशय मिथ्यात्व' किनेक अल्पज्ञ जीव, तथा अज्ञानी, किसी पुण्य योग्यसे जैन धर्म तो पागये, जैन के शास्त्र सुणे, क्रिया करे, परंतु किलीक गहन बातों नहीं जचनेसे शंका करे की, सुइकी अप्रजित्नी ज. गामें अनंत जीव, पाणीकी बुंदमें असंख्याते जीव, पूर्व पल्योपम और सागरोपम का आयुष्य, हजारों, लाखो धनुष्यकी अवगहना, नगरीयोंका प्रमाण और वस्ती, चक्रवतीकी ऋधि और प्राक्रम, लब्धीयों, भूगोल खगों ल का हिंशाब तथा अरूषी जीवराशी, सुक्ष्म जीवों,