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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. नीच निंदा ही निंदा पात्र है. (२) निद्रा (नींद) ये भी सत्कार्यमें विधान करने वाला जब्बर शन है, इसकी धर्म स्थानमें विशेषता द्रष्टी आती है. कित्येक मुनीवृत धारण कर, पापी श्रवण (साधु) बनते हैं, अर्थात् विना मेहनतसे अहार, वस्त्र, उपश्रयादी सामग्री के प्राप्त हो ने से, बेफिकर हो, बहुत काल निद्रामें गुजारते हैं. यह निद्रा प्रमाद भी दोनो भवमें दुःख प्रद हैं.
__ ५विकहा-देशकथा, राजकथा, स्वीकथा, भक्तकथा, यह चार प्रकारकी वी (खोटी) कथा कहीये. औ र भी चोरोकी धन की, धर्म खंडनकी, वैर विरोधकी, गुणवधक, कामोतेजक कलेद कारणी, परपीडा कारणी ग्लानी उत्पन्न करने वाली, इत्यादी अनेक प्रकार की वी कथा हैं. उसमें जो अमुल्य मनुष्य जन्मका आयुष्य क्षय करते हैं, वो अन्याय करते हैं. किनेक विद्वानो पर्षादा को खुश करने अनेक कपोल कल्पित बातों. कल्पित विषयिक ढालो. हांस शृंगार, ___* सवैया, नर्क निगोदभमें निंदा का करणहार, चड्डाल स.
मान ज्यांकी संगत न कामकी; आपकी बडाइ पर हाणीमें मगन . मुढ, ताकत पराये छिद्र नीत है हरामकी. वाकी निंदा कान सुण, खुशी नहीं होणा कधीं, पीछे से करेगा नर, तेरी बद नाम की. तिलोक कहेत तेरे दोष हैं निंदक माई, ह्यासे मर जाय. आ. गेगी यमधाप की.