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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १३९ क्व प्रधान, उद्यम-प्रोहित, उपशम शैन्याधीश, शांतभाव-कोतवाल, शुभ भाव-नगर श्रेष्ट, विज्ञान-भंडारी, पर्मायमसे भंडार भरपुर,सत्संग-दाणी, व्यवहार पटेल. गुगीजन-भाट. सत्य दूत. न्याय-द्वारपाल. मन निग्रहअश्वाद्विप, मार्दव-गजाद्वीप, आर्जव-रथाद्वीप,और सं. तोष-पायकाधीप, इत्यादी को यथा योग्य पद पे स्थपन्न कर, चैतन्य माहाराजा आनंद से राजकरने लगे. परन्तु मोह के प्रबल प्रताप रुप छाप उनके हृदय में चमक रही थी.
एक दिन सभामें बोले की, मेरे प्यारे मंत्रीसामंत गणो ! में आप के संयोग से बहुत आनंद पायाहू-तथापी जब तक मोह शव नष्ट न होगा. तब तक मूजे रा सुख हुवा नहीं मानता हूं. इस लिये मोह के नष्ट होने का अश्यल प्रयत्ल किया चहाता हूं. इत्न सुगतेही विवेकादी सर्व, नम्रतापुर्वक वाले, नाथ की जीये शिव सजाइ. चलिये अब्बी एक क्षिण में मोह का नाशकर, अयका इष्टितार्थ सिद्ध कर, सर्व सुखी बनीये. चैतन्य का हुकान होतेही सब उभटो मोहके प्राजय की सजाइ करने लगे.
यह समाचार प्रणाम रूप सुभट द्वारा मोहो नृपने पयेकी, चैतन्यने श्रवा नगरीको संयम मेहल यु.