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__१२६ ध्यानकल्पतरू. हीं ६ को और कहीं २० को क्रोडी कहते हैं. ऐसे ही उस वक्तभी किसी बड़ी संख्याकों क्रोडी कहते होंगे. ६ अम्बी भी एकेक मिनिटमें हजारो का व्याज आवे, ऐसे श्रीमंत बेठे हैं. तो उस वक्त इभ पति आदी होवे उसमें क्या हरकत ? ७ अब्बी भी लोहेकी शांकल तोडने वाले मनुष्य हैं, तो गत कालमें अ. नंत बली होवे उसमे क्या अश्चर्य? ८ और पृथ्वी का अंतः किन्ने देखा है, जो केवलीके बचनको उत्थापके अमुक संख्यामें ही द्वीप समुद्र बताते हैं;
और जो द्विप समुद्र असंख्य हैं. तो उन्हमें प्रकाश करने वाले चन्द्र सूर्य भी असंख्य हुये चा हीये. ९ आँखसे विन देखे शब्द गन्ध आदी से ग्रही वस्तुकों कबूल करे, तो फिर अरूपी पदार्थ कों बिन देखे क्यों नहीं माने. १० घत भोगव करके भी उसका स्वाद नहीं कह सक्ते हो, तो मोक्षके सुखका वर्णन मुखसे कैसे हो सके, भोगवे सोही जाने. इत्या दि स्थुल विचारोंसे कित्नेक स्थुल बातोंका निर्णय हो सके, और किनेक अग्रह्य बातोंका निर्णय नहीं भी हो सके तो भी सम्यक्त्व द्रष्टी वितरागके बचनोपे आस ता रखते हैं. जैसे जबैरीके कहनेसे लाख रुपैके हीरे को लाखहीका मानते है. और मिथ्यात्वी शंशय में