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तृतीयशाखा-धर्मध्याम. १२५ और मोक्षके सुख तथा आस्तित्व वगैरे २ बातोंमे वैम लावे, के यह असंभव बातों सच्ची कैसे मानी जाय. प. रंतु यों नहीं विचारे की यह अनंत ज्ञानीके समुद्र जैसे बचन मेरी लोटे जैती बुद्धीमें कैसे समावे. वितराग पुरुष मिथ्यालाप कदापि न करनेके, केवल ज्ञा नमें जैसा द्रष्टी आया वैसा फरमाया. और सच है अब्बी १ जो क्रोड औषधी के चूर्ण का राइ जित्ने विभागमें भी क्रोड औषधी का अंश समजते है,यह तो करतबी है, तो कुदरती कंदमूलके टुकडेमें अनंत जीव होवे उसमें क्या अश्चर्य ? २ अब्बी भी हाथीका बड़ा और कुंथवेका छोटा सरीर होता हैं. वैसे ही गत कालमें मनुष्यादी की ज्या दा अवघेणा और ज्यादा आयुष्य होवे उसमें क्या आ श्चर्य? ३ तथा हाथी बहुत दूरसे दिखता है और कू थवा नजिककाही मुशीबत से दिखता है. उससेभी ज्यादा सुक्षम पृथव्या दिकके जीव होवे और वो द्रष्टी न आवे इसमें क्या आश्चर्य? ४ अब्बी भी अन्यस्थानोंमे बडे २ शेहर हैं तो प्राचीन कालमें १२ योजनके नगर शेहर होवे उसमे क्या आश्चर्य? ५क्षेत्र फलावट से कोटी घर और मनुष्योंकी वस्तीसें शंका लाते हैं; परंतु कोटी शब्दका अर्थ एक कोडही होय ऐसा न समजीये अव्बी भी क