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११० ध्यानकल्पतरू. मान. इत्यादि अनेक सूकार्योंकी करनेवाली श्री जीव दयाही हैं.
____ 'दयाही धर्मका मूल है, सर्वमत मतांतर एक दयाकेही सारेसें चलरहे है. दया-अनुकम्पाही सम्यक्त्वीयो (धर्मात्माओं) का लक्षण है. ऐसी पवित्र द• याको धर्म-ध्यानी आपणी आत्मामें सदा निवास देते है, अर्थात सदा दयाद्र भाव रखते है.
दयाल अन्य जीवोंको दुःखीदेख करुणा लाते है. त्रस स्थावर जीवोंको सरीरिक. (रोगादिक) और मानसिक (चिंता)से पीडित देख, करुणा लावे. जैसे अञ्ची कोइ दयवंत किसी बधीर (बैरे) को देख, वि चारते हैं की, इस बेचारेके कैसा पापका उदय है, की यह सुण नहीं शक्ता है. बधीर और अन्धा दोनो दुः खसे पिडित देखनसे विशेष दया आती है. वैसेही किसीको अंगोपांग व अन्न वस्त्र हीन देख, रोग सो
* श्रेणीक राजारेसुत, हाथी भवदया पाली; मेघराथ दयकाज, माडदीयो मरणो, धर्मरुचीदयाधार, करगयाखेवापार; श्रेणिक पड हवनायो, सूत्रमें निरणो; नेम ने दया पाली, छोडदी गज लनारी; मेतारजदयापाल मेठ दियोमरणों; तेवीसमां जिनराय, तापसके पासजाय, जीवने वचायदीयो-नवकारकोसरणो; सवैयोसवायो कीयो घनाश्रीनामदीयो; जीवदया धर्मपालो, जो ये --... me. minी narr: