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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १२१ छ इंद्रियोंके पोषणे लिये जक्तमें होता है. उन ) की अवृत समय २ अपञ्चखाणीके अती है. और कर्मका ब न्ध करतीहै. देखीये इंद्रीयों पोषणे अनेक पचेंद्रीय. का कट्टा कर चमडा लाते हैं. और बाजिंत्र मंडाते हैं, धातू गलाके कशाल. भंभा प्रमुख बनाते है. अनेक मनहर स्थान वस्त्र, भुषण. भोजनादी सामुग्रही अनेक आरंभ कर निपजाते हैं. मद्रा, मांस अभक्षका अहार, परस्त्री वैश्यागमन, इत्यादी एकेक कर्म के पाप के सामे जो दीर्घद्रष्टी से विचारते हैं तो वेचारे पृथवीयादी जीवोंका घमशाण द्रष्टी पडता हैं. (१) एक वस्त्र निपजाणे. पृथवी का पेट हलसें चीरना. और खेती में खात न्हाख उसमें असंख्य त्रसस्थावर कट्टा. निदाणी प्रमुख अनेक खेती के पाप से झाड होवे. कपास लगे उसे चूट भेलाकरे. फिर गिरनी पेलोडावे, जावत वस्त्र तैयार होवें वहां तक असंख्य त्रस स्थावरों का घमशाण हो जाय. फिर रंगण कर्म वगैरे होवे वहां का पाप विचारीये. ऐसे महा अनर्थं से एक वस्त्र निपजता हैं. तैसेही भुषण को देखीये. धातूर वादी धातू से मट्टी अलग कर, सोनार उसे गला घाट घड उज्व लादी क्रियामें किला आरंभ होता है. ऐसे भोजन म कान वगैरे संसारके अनेक कार्योंको. अला २ साली