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१२० - ध्यानकल्पतरू, मापे जमाती हैं...
१५ जोग-१ सत्यमन, २ असत्यमन, ३मिध मन, [साचा झूटा भेला] ४ व्यवहार मन, ५ सत्य (साचाभी नहीं झूटाभी नहीं) भाषा ६ असत्य भाषा, ७ मिश्र भाषा, ८ व्यवहार भाषा. ९उदारिक-सप्त धातु मय, मनुष्य, तिर्यंच, का सरीर, १० उदारिक मिश्र-उदारिक उत्पन्न होते, या वेक्रय करते वक्त मिशता रहें. ११ वेकशुनाशुभ पुद्गलोंसें बना, नर्क, देव, का सरीर १२ मिश्र वेक्रय उपजे तब, या उत्तर वेक्रय करे तब निक्षत रहे, १३ अहारिक-पूर्वधारी मुनी संशय निवारले आस्म प्रदेशका पूसला निकाले सो. १४ आरिफ मिश्र-- पूतला निकालते व समावते वक्त मिश्रता रहै. १५ कारमाण जोग प्रथम सरीरको छोड दूसरे सरीरमे जाती वक्त बलावू रूप साथ रहे सो. यह १५ योग कर्मोका अकर्षण करते है.
__१२ “अवृत” (१-६) पृथवी, पाणी, अग्नी, वायू वनस्पति और ऋत. [इन छे कायका जिला आरंभ] (७-१२) श्रत, चक्षु, घण, रस, स्पर्य और मन [इन - + जैसे जलता तो तेल बत्ती और कहें दीना अले जाते सो आप हैं. और कहे ग्राम आया.