________________
तृतीयशाखा-धर्मध्यान.
-१११
गसे पीडाते देख, बहुत दया आती है, तैसेही बेचारे तिर्यंच (पशु) अन्न वस्त्र गृह रहित निराधार है, परा धीनता से क्षुधा त्रषा-शति - ताप आदी अनेक दुःख भोगवते है, तिर्यच पचेंद्रीसे चौरिंद्रीकों दुःख ज्यादा है क्यों कि वो एक इन्द्रि रहित है. चौरेिंद्रीसें तेंद्री में, सेंद्रीसे, बेंद्री. बेंद्रसेि एकेंद्री में और एकेंद्रीसे निगोद (कंदमूलआदी) में दुःख अधिक है. क्यों कि ये एक सरीरमें अनंत जीव एकत्र रहते है.
एक महोर्त ( ४८ मिनट) में ६५५३६ जन्म मरण करते है. इत्नी वे बसी है की, दुःखसे छूटने का उपाय करनेकी शक्ती दूर रही, परन्तु अपना दुः ख दूसरेको दरसाभी नही शक्ते हैं! वेचारे कृर्तकर्मके फल भुक्ततें है. और उनकी घात करनेवाले वैसेही नवे कर्मोंका बंध करते है; वो भोगवते उनके भी ऐसेही हाल होते है. ऐसा ज्ञानसे जाणनेवाले, फक्त एक श्रीजिनेश्वरके अनुयायीयों अहै. वोही सब जीवोंको अभय देते हैं, नहीं तो सब स्थान घमशाण मच
* एकेंद्रीकी हिंशा सें बेंद्रीकी हिंशामें पाप ज्यादा वेदसि तंत्रीकी, तेंद्र से चोरिंद्रीकीमें, और चोरिंद्रांसे पचेद्रीकी हिंसा पर प ज्यादा इसका मतलब यह है की, जो उस स्थिती को प ये है वो अनंतानंत पुन्यकी बृत्री होने जैसे गरीबको गाली