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तृतीयशाखा-धर्मध्यान.
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कर्म से शुद्ध क्षायिक सम्यक्त्वी हुये. आयुष्य कर्मके नष्ट होनेसे अजरामर हुये. नाम कर्मके नाशसे, अरूपी हुये, गौत्र कर्मके नाशसें खोड (अप लक्षण) रहित हुये. और अंत्राय कर्मके क्षयसे, अनंत दानलब्धी, लाभलब्धी, भोग लब्धी, उपभोग लब्धी और अनंत बलविर्य लब्धी, के धरन हार हुये. ऐसे अनंत गुण सिद्ध भगवंतके हैं. उनका ध्यान ध्यानी करें.
"गति गमना"
पांच गतिमे गमन करनेके २० कारण- १ म हारंभ = सदा बस स्थावर जीवोंका आरंभ (घमशाण) हो, ऐसा कारखाना चलावे. २ महा परिग्रह = महा अनर्थ से द्रव्योपारजन करता अचके नहीं. और "चमडी जावो पण दमडी मत जावो" ऐसा लालची. ३ " कुणिमाहारी” मांस मदिरादी अभक्षका भक्षक ४ पंचेंद्रिय बधक = मनुष्य पशुका घातिक. इन चार कर्मोसे नर्क में जाय. ५ माया = दगाबाज. ६ मिबड़ मा या मीठा ठग, धुर्त. ७ मच्छरी-गुणीका द्वेषी. ८ कुड माणे-खोटे तोले मापे रक्खे. इन ४ कर्मोंसे तिर्यंच (पशु) गतिमे जाय. ९ भद्रिक - सरल (बगा