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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. समभाव रक्खे; जिससे सदा परमानंदी, परम सुखी बनें रहैं.
- "मोक्षगमना"
पहले जो बन्धका वर्णन किया, उस बंधसे मु क्त होवें (छूटे) उसेही मोक्ष कहते हैं. जैसे बन्धनकें योगसे तुम्बा पाणीमें डूबा रहता है और वह बन्धन टूटतेही उस तुम्बेका पाणी उपर आके ठेहरनेका स्व भाव हैं. तैसेही जीव कर्म बन्धनसे छूटतेही, मोक्षस्थानमें जा ठेहरनेका स्वभाव हैं. वह मोक्ष स्थान लोकके मध्याभागमें जो त्रस नाल १४ राजू लम्बी है उसके उपर अग्रभागमें, एक सिद्ध शिल्ला, ४५ लक्ष योजनकी लम्बीचौडी (गोलपतासे जैसी) मध्यमें ८ जोजन जाडी, कम-होती २ किनारेपे अत्यंत पतली है. श्वेत सुवर्णकी हैं. उसपे एकही जोजन लोक हैं. उस जोजनके उपरके छट्टे विभागमें सिद्ध स्थान मोक्षस्थान हैं. वहां मोक्ष प्राप्त हुये जीवके विशुद्ध निजात्म प्रदेश संस्थित (रहें) हैं. अलोकको लगे हैं. वो सिद्ध भगवंत कैसे हैं.
* जैसे पाणीके आधार विन तुम्वा आगे जाता नही हैं. तैसे हा धर्मास्तिके आधार विन जीव मोक्ष (लोकाग्र) के आगे (पा.
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