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ध्यानकल्पतरू. नते है. यह अश्चर्य (तमाशा) भी तो जरा देखीये! [१] जो शब्द सुननेंसे सुखही होयतो गाली सुन संतस क्यों होते हैं, क्योंकि उत्पती और ग्रहण करनेका स्थान तो एकही है, और जो गालीयोको दुःख रूप मानते है वो स्नेही स्त्रीयोंकी गाली सुन खुशी क्यों होते है. [२] रूप देखके प्रसन्न होते हैं तो अशुची देख क्यों घ्रणा (दुगंच्छा) करते है. क्योंकि वोभी कोइ वक्त में चित को हरण करने वाला पदार्थ था! तथा आगमिक गालमें रूपान्त्र पाके मजा देनेवाला होजाता है. और सच्चीही अशुचीसे नाखुष होवे तोस्त्री सम्बन्ध अशुची के मथनमे क्यों मजा मानतें है. [३] दुगंध आ नेसे नाक क्यों फिराना, क्योंकि बोभी एक तरहकी गंध है. रूपांत्र हो मनहर हो जाती हैं. और जो सच्चेही दुगंध से नाराज होते हो तो मृत्यु लोककी ५०० जोजन उपर दुगंध जातीहै, उसमें क्यों राचे है. [४] मन्योग-मधुर रस सेही जो सुख पाते है वो तो फिर हकीमसे क्यों कहे के शकर खाइ जिससे बुखार आगया, और घृत खाया जिससे खांसी होगइ. जो घृत शक्कर जैसे पदार्थ ही दुःख दाता हैं. तो फिर अन्यका क्या कहे. वैदक करता है जम्मापी ते गाणी" अर्थात रसका