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उपशाखा-शुभध्यान. योग्य प्रयल उपाय करे, उन्हे सुखी; करे सो करुणा भावना.
४ 'मध्यस्त भाव-इश विश्वमें कित्नेक भारी कमै पापिष्ट जीव सद्गुण, सद्कर्मको त्याग, खोटेको विकार करते हैं. सदा क्रोधमें संत्त, मानमें अकडे हुये, मायासे भरे हुये, लोभमें तत्पर रहतें हैं. निर्दयतासे, अनाथ प्राणीयोंका कट्टा करते हैं. मदिरा, मांस कंदमूलआदी अभक्षका भक्षण करते हैं.असत्य, चोरी, मैथुनमें पटूता (चतुरता) बताते हैं. विषय लंपट वैश्या, पर स्त्री गमनमें आनंद मानें, जुगारा (जुवा) दी दुर्व्यसनने लुब्ध अष्ठादश पापोमें अनुरक्त,देव,गुरु, धर्मके, निमित हिंसा करने वाले, हिंशामें धर्म माननेवाले कूदेव, कूगुरु, कूधर्मकी प्रतिष्टा बडाने बाले, अच्छेकी निंदा करनेवाले, अपनी २ परशंस्यामें मग्न. इत्यादी पापी जीवोंकों देख, राग द्वेष रहित, मध्यस्त प्रणामसे विचार करे की, आहा! देखो इन बेचारे जीवोंकी कैती विषम कर्म गती हैं; अत्यंत कष्ट चार गती रूप संसारमें सहन करते २, अनंत कष्टसे मुक्त (छुटका) करनेवाली अनंतानंते पुन्योदयसे, मनुष्य जन्मादी उतमोत्तम सामग्रीयों प्राप्त हुई हैं. इसे, व्यर्थ ममाते हैं कमाते हैं। ----- ---