________________
तृतीयशाखा - धर्मध्यान.
सुत्रार्थ मार्गणा महावृत भावनाच, श्लोक पञ्चेन्द्रियोप शमता ति दयाद्र भावः; बन्ध प्रमोक्ष गमना गति हेतु चिन्ता, ध्यानतु धर्म्य मिति तत्प्रवदन्ति तज्ञः.
सागर धर्मामृत.
अस्यार्थं - सुत्रोंका अर्थ, जीवोंकी मार्गणा, म हावृत, भावना, पांच इन्द्रियों दमनका विचार, दयाद्रभाव, कर्मसे बन्धनका, और छुटनेके उपाय का वि चार, चार गति और ५७ हेतूकी चिंतवना; इत्यादि विचार करे उसे धर्म ध्यानका ध्याता श्री तत्वज्ञ प्रभूनें फरमाया हैं.
ध्यान कर्ताको श्रुतज्ञानकी अव्वल आवश्यकता हैं; इस लिये पहले ह्या श्रुतज्ञान वरणत्र करते हैं.
66
सुत्रार्थ
सुदकेबलं च णाणं, दोणी विसरिसा णि होति बोहादो. सुदणाणं तुपरीरकं, वच्चरकं केवल णाणं.
गाथा
**$6.06.06.6
८५
""
मोमठसार
अर्थ-त ज्ञान और केवलज्ञान दोनों बरोबर हैं. फरक इनाही की श्रुत ज्ञान तो परोक्ष हैं. और केवल ज्ञान प्रतक्ष हैं. क्यों कि केवली भगवानने जो जो भाव केवल ज्ञानमें जाणें हैं, को