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८८ ध्यानकल्पतरू. में अच्छी स्थिरता रहनेका संभव है. इसलिये ह्यां मार्गणा कहते हैं.. • १ “गति” गति उसे कहते है की जिसमें गतागत (आवागमन) करे, वह गती ४ है. (१) 'नर्कगति' जो अधो (नीचे) लोकमें ७ दुःखमय स्थान है. (२) तिर्यंच गति' जो एकेंद्री सूक्ष्म तो सर्व लोक व्यापी है और बादर एकेंद्री तथा बेन्द्रीसे पचेन्द्रीय प्रयंत पशू (जानवर) जीव है. (३) 'मनुष्य गति' जो तिरछे लोकभे कर्म भूमी अकर्म भूमी मनुष्य जीव है. (४) 'और देव गति' जो पातल (नीचे) लोकवासी भवन पति, बाणव्यंतर, देव, तिग्छे लोकमें चंद्र सूर्यादी जोतषी देव, और उर्द्ध (उचे) लोकवासी, कल्पवासी, १२ स्वर्ग (देवलोक) में रहे वह, कल्पातीत सो ९ ग्री वेग और अनुत्तर विमान वासीदेव. यह चार गति.
और पंचमी मोक्षको भी गति कहते हैं परंतु वहां गये पीछे पुनरावृत्ती (आना) नहीं है. .
२ "इंद्रिय" इन्द्रिय उसे कहते हैं. जिससे जीवकी जातीकी समज होए. वह इन्द्रिय ५ है (१) 'एकेंद्रीय' जो पृथव्यादिक एक स्पर्म्य इन्द्रियवाले
जीव. (२) बेंद्रिय ' जो किटकादिक स्पर्य और _..-- ..- नी (2) दिय' जो यका (ज्यं)