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ध्यानकल्पतरू.
उनहीके हाथमें देके देखीये. वो कैसा प्यार करते हैं. इत्यादि विचारसे अशुची सरीरपेसें ममत्व त्याग, इस सरीरके अन्दर रहा हुवा जो आत्मा (जीव) परम पवित्र ज्ञानादी रत्नोका धारक हैं. उसे अशुचीमय कराग्रह (केदखाने) से छुडानेके लिये ब्रम्हचायी प. वित्र वृत्तोंको धारण कर, परम पवित्र शिवस्थानका • बासी बनावो.
७"आश्रव-भावना" जैसे सछिद्र नाव पाणीमें डूबती हैं. वैसेही मिथ्यात्व, अवृत, प्रमाद, कयाय,इन पाप रूप पाणी, शुभाशुभ जोग रुप छिद्र करके, आस्मरूप नावमें प्रवेश कर, संसार रुप समुद्रमें आत्माको डुवाता हैं. ऐसा जाण आश्रावको छोडके आत्मा को संसार समसे तारनेका उपाय करे..
८"संवर-भावना" अश्रव तत्वमें आत्माकों इ. बाने वाले बताये. उनको रोकनेका उपाय, सों संवर सम्यक्त्व, वृत, अप्रमाद, अकषाय, और स्थिरयोग है. इनसे रोक, ज्ञानादी रत्नत्रय रुप अक्षय निधीके साथ संसार समुद्र के किनारे, मोक्ष रुप पट्टन हैं, उसे प्राप्त करे.
९"निर्जरा-भावना" जीवका स्वभाव तो मोक्षमें जानेकाही है; परंतु अनादी सम्बंधी कर्म रुप वजनसे दबकर जा नहीं सक्ता हैं. जैसे तुम्बेका स्वभाव