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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १०१ क्षेत्रके३२००० देशमें फक्त २५॥ देश आर्य हैं. ऐसे अन्य क्षेत्रोंमे भी आर्यभूमीकी नुन्यता है. और १५ क्षेत्र में से फक्त ५ महा विदेह क्षेत्रमें तो सदा धर्म करणी का जोग रहता हैं, और भरत ऐरावत १० क्षेत्रोंमें दश क्रोडाकोडी सागर सरपणी कालमें फक्त १ क्रो डाकोडी सागरही धर्म करणीका होता हैं. सो प्राप्त होना बहूत मुशकिक हैं. ये भी मिलगया तो आर्यक्षेत्र, उत्तम-कुल. दीर्घ आयुष्य. पूर्ण-इन्द्रीय. निरोगीसरीर. सुखे उपजीविक, सद्गुरु दर्शन. शास्त्र श्रवण-मनन-निध्यासन. होके भी भव्य पणा. सम्यक द्रष्टिपणा. सुल्लभबौधी, हलूकी. स्वल्प संसारीपणा वगैरे जोग मिले, तव धर्मपर रुची जगे; और बौध बीज सम्यक्त्वकी प्राप्ती होवे. देखा ! कित्ना दुल्लभ बौध बीज मिलता हैं सो, हे भव्य जनो!! अत्यंत पुन्योदयसे अपन बहोत उंचे आये हैं. बौध बीज हाथ लगा हैं (तो अब इसे व्यर्थ न गमाते) आत्म क्षेत्रमें इस बीजको रख, ज्ञान जल (पाणी) से सींचन करो, की जिससे धर्मवृक्षलगे जो मोक्ष पल देवें.
१२ “धर्म भावना"-"धारयेति धम्म पडतेजी. वको धर (पकड) रखे सो धर्म. “संसारंभी दुःख पउ रए" संसार सागर महा दःखसे भरा हैं. इसमें पडतें .