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१०० ध्यानकल्पतरू. मान नहीं होते हैं. सदा निरामय सुखमें लीन रहते हैं. हे आत्मा! उल स्थानको प्राप्त होनेका उपाय कर..
११“बौध बीज दुर्लभ भावना"-ओर सर्व वस्तु प्राप्त होनी सहज है. परंतु बौध-बीज सम्यक्त्व रत्नकी प्राती होनी बहुतही मुशकिल है; सो विचारीये. बौध बीज की प्राप्ती विशेष कर, मनुष्य जन्ममें ही होती है, "दुल्लाहा खल्लु माणुसा भवे” अर्थात मनुष्य जन्म मि. लना बहुतही मुशकिल हैं. ९८ बोलकी अल्गाबहुतमें पहलेही बोलमे कहा हैं की-“सबसे थोडे गर्भज मन प्य" इस बोलकी सिद्धी करते है-३४३ राजूका संपूर्ण लोक जीवोंसे ठसाठस भरा है, बालाग्र जित्नीभीजगा खाली नहीं हैं. उसमें त्रस जीव फक्त १४ राजमें है. जिसमें ७ राजु नीचे नर्क और७ राजू माठेरा (कुछकम) उपर स्वर्ग जिसके बीच में १८०० जो जनका जाड़ा और १राजू चौडा तिरछा लोक गिना जाता है; जिसमें असंख्य द्विप समुद्र है. उसमें ४५ लाख जोजन मेंही म . नुष्य लोक गिना जाताहै. जिसमे. २० लाख जोजन तो समुद्र ने रोकोह. और कुलाचलों (पर्वतो) ने, नदीयोने बनो ने बहुत ज़गा रोकी, मनुण्यके तो फक्त १०१ क्षेत्रहैं.(इत्ने थोडे मनुष्य हैं)जिसमें फक्त १५क्षेत्र कर्म भूमीके हैं. उसमें. भीआर्य भूमी कम हैं. जैसे भर्त