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ध्यानकल्पतरू. (१) स्त्री, (२) पुरुष, (३) नपुंसक.
६ “कसाय” कषाय संसारका कस्तारस] आके आत्माके प्रदेशषे जसे वह कयाय ४ [१] क्रोध, गुस्सा [२] 'मान' [अभीमान] [३] 'माया' [कपट] [४] 'लोभ' [तृष्णा] .
७“नाणे” ज्ञान-जिनसे पदार्थको जाणे वह ज्ञान ८ हैं. [१] 'मति ज्ञान' [बुद्धी] [२] 'अती ज्ञान [शास्त्रस्मबंधी] [३] 'अवधी ज्ञान' [रुपी सर्व पदार्थ जाणे] [४] 'मन पर्यव ज्ञान' [मनकी बात जाणे] [५] 'केवलज्ञान' [सर्व द्रव्य क्षेत्र काल भाव जाणे] [यह ५ ज्ञान-सम्यक द्रष्टीकों होते हैं.]
[६] 'मति अज्ञान' [कुबुद्धी] २ 'श्रुती अज्ञान' कुशास्त्राभ्यास ३ 'विभंग ज्ञान' उलटा जाणे] [यह ३ अज्ञान मित्यात्व द्रष्टीको होते हैं.]
८"संजम” संयम-कोसे आत्मा का निग्रह करना रोकना वह संमय ७ हैं. १ 'अवृति' (जिस सन्यक ब्रटी ने निथ्यात्यले आत्माको वचाइ २ देशवृति श्रावक ३ सामाइक देशलें श्रावकका और जाव जीव साधूकी) ४ छै दोषस्थापनिय दोपलें निवारनेवाला) ५ परिहार 'विशुद्धी' 'शुद्ध चरित्र ६ 'सुक्ष्मसंपराय' (थोडा लोभविगर सब दोष रहित ७पथा