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ध्यानकल्पतरू.
[छहा, सव्वं राइ भोयणं वेरमणं” अन्न, पाणी, मेवा मिठाइ, और मुखवास (तंबोलादी) इत्यादी अ हार रात्रीको सर्वथा प्रकारे त्रिविध २ नहीं भोग] ध्यानी इन महावृतोंको इनकी भावना भांगे तणावें सहित चितवन करनेसे अपने कृतव्य प्रायण होंगे.
१२ “भावना.” १ “अनित्य भावना”- द्रव्यार्थिक नयसें, अविन्याशी स्वभावका धारक जो आत्मद्रव्य हैं. उससे भिन्न (अलग) रागादी विभाव रुप कर्म हैं. उनके स्वभावसे ग्रहण किये हुये. स्त्री पुत्रादी सचेतनद्रव्य, सु. वर्णादी अचेतन द्रव्य, और इन दोनोंसे मिले हुये मि श्र द्रव्य, जो हैं सो सर्व अनित्य, अध्रव, विनाशिक हैं. ऐसी भावना जिनके हृदयमै रमती हैं, उनका सर्व अन्यद्रव्योंपरसे ममत्वका अभाव होजाता हैं (जैसे वमन किये हुये पैसे ममत्व कमी होता हैं.) वो महात्मा अक्षय, अनंत, सुखका स्थान, जो मोक्ष उसे पाते हैं. . २“असरण भावना"-इस आत्माकों, ज्ञान दर्शन, चारित्र, तथा अरिहंतादी पंच प्रमेष्टी छोड, अन्य टेटि ट स ग म म गा in स.