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तृतीयशाखा-धर्मध्यान
तृतीयशाखा-“धर्मध्यान"
धम्मे झाणे चउबिहे चउप्पडयारो पन्नत तंज्जहा.
अर्थ-धर्म ध्यानके चार पाये, चार लक्षण, चार आलंबन, और चार
र अनुप्रेक्षा, यों १६ भेद श्री भगवंतनें फरमाये हैं, सो जैसे हैं वैसे ह्यां कहते हैं.
जैसे पहले अशुभ ध्यानके दो भेद (आर्तध्यान और रौद्रध्यान) किये, तैसे शुभध्यान के भी दोही भेद जाणना. १ धर्मध्यान और २ सुक्लध्यान, इनका वर्णन अब आगे चलेगा.
___ पहले उपशाखामें शुभध्यान करने की विधी बताइ. अब ह्यां ध्यानस्त हुये पीछे, अच्छा जो विचार करना तो कहते है. अच्छे विचार दो तरह से होते है. १ एकांत कर्मोंकी निर्जरा कर, सर्व कर्मकों नष्ट कर, मोक्ष रूप फलका देने वाला, उसे सुक्लध्यान कहते है.