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उपशाखा-शुभध्यान. शुद्ध ध्यानमें प्रबृतते जीवकों महा प्राक्रम प्रगटता है. वितराग दिशाकों प्राप्त होता है. उसवक्त ध्याताको मुक्ती सुखका अनुभव ह्यांही (इस, लोकमें) होने लगता हैं. ऐसी प्रबल शक्तीके धारन करने वाला ये विधी युक्त ध्यान हैं.
यह क्षेत्रादी ८ प्रकारकें शुद्धाशुद्ध ध्यान साधनोंमेंसे अशुद्धको त्याग शुद्धको ग्रहने वाले ध्यान ध्यानेकी योग्यताको प्राप्त हो सकेंगे.
प्रदिप्त होती है. (५) 'स्वा पया sसं प्रयोगे चितस्य स्वरूपानुकार इन्द्रियाणां प्रत्याहार-साधनसे शब्दादी विषयों जो साधारण चितको प्रवृतता है. उसका निरंधन कर ध्येय पदार्थमें स्थिर करे सो प्रत्याहार, इससे मन स्वाधीन स्ववत्र हो जाता है. (६) 'देशबंधश्चितस्य धारणा' फिरते हुये चित ( मन ) को रोक इष्टमें एकाग्रता करे सो धारणा. (७) 'तत्र प्रत्येयैकतानता. ध्यानम' धारणा के पश्चात ध्यान होता है. जिसकी धारणा करी उसमें तन्मय-अभिन्न होवे सो ध्यान (1) 'तदेवार्थ मात्र निभीसं स्वरूप शुन्य मिव ममाधिः ध्यान पीछे समाधी होती है. समाधीमें भान भूल जाते हैं. "यकत्र संयमः यह तीनही एकत्र होनेले संयप होता है।
* ध्यानमें जिस वस्तुकी चिंतवन करता है. उसका भान रहता है. समाधीमें भान भल केवल ध्येय दिखता हैं..