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गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ३५
सर्व धर्मोकी परीक्षा होनी चाहिये, जो सत्य ठहरे उसके सिवाय सर्वको मुसल्मान बना लिया जावे। बादशाहने देहलीमें आज्ञा दी कि सर्व अपने २ धर्मकी परीक्षा दें और अपने गुरुको लेकर आवें, नहीं तो हमारा धर्म स्वीकार करना पड़ेगा। जैनियोंको भी यह आज्ञा हुई । उस ओर तब कोई दिगम्बर मुनि नहीं थे । उनको ढूंढने के लिये जैनियोंने बादशाह से छह मासका समय मांगा। बादशाहने स्वीकार किया । जैनी लोग दक्षिणकी ओर आये और उन्हें तीन मास बाद गिरनारपर श्रीमाहव सेन ( महासेन ) स्वामीका दर्शन हुआ। उनसे सर्व हाल कहा। जैनी लोग वहीं ठहरे रहे, पर स्वामीका विहार नहीं हुआ। इतनेमें जब छह मास में एक दिन ही शेष रहा तत्र श्रावक लोग घबड़ाये | स्वामीने कहा तुम चिन्ता न करो । तपोबल से | दूसरे दिन प्रातःकाल स्वामी देहलीकी मसानभूमिमें पहुंच गये और सर्व जैनी अपने २ घरों में सोते २ उठे । उसी रात्रिको एक सेटके पुत्रको सर्पने डंस लिया । उसको मृतक समझ लोग वहीं जलानेको आये जहां मुनि महाराज विराजमान थे। मुनिने पुत्रको देखकर कहा हि यह मरा नहीं है सर्व लोग ठहर गये। मुनिने पुत्रको सचेत कर दिया । वह अच्छी तरह खेलने लगा । इस बातकी बड़ी प्रसिद्धि हुई । बादशाह राम्रो और चेतनके साथ मुनि महाराज से मिले। इन ब्राह्मणोंने मुनिको देखते ही कहा कि आपने अपने कमंडलुमें मछलियां क्यों रख छोड़ी हैं? मुनिने कहा कि पूजनके लिये पुप्प हैं, मछलियां नहीं । कमंडलु देखा गया तो पुष्प ही निकले । फिर दोनों ब्राह्मणोंने मुनिराज से षट् मतपर खूब वादानुवाद किया। मुनि महाराजकी विजय हुई। जैन
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