________________
३२] भारतीय विद्या
अनुपूर्ति [तृतीय उदयपुरमें श्रीमोतीलालजी सेतलवड उसरे दिन फ्रंटियरमेलसे हम श्रीमोतीलालजीको साथ लेकर उदयपुरके लिये
५रवाना हुए । सिंघीजीने जब यह सुना कि-श्रीमुंशीजीको हम अपने पक्षकी ओरसे ला न सके इतना ही नहीं वरन् वे सामनेवाली पार्टीकी ओरसे वहां आ रहे हैं, तब उनको बहुत बुरा लगा और वे हतोत्साहसे हो गये । एक तो यों ही बहुत दिनोंसे मामला अस्तव्यस्तसा चल रहा था और उसके लिये व्यर्थका ही बहुतसा खर्च हो रहा था, जिससे सिंघीजी उकता रहे थे। इसमें फिर उनकी इच्छानुसार कॉन्सल वगैरहका प्रबन्ध नहीं हो रहा था इससे उनकी बेचैनी और भी अधिक बढ़ी। मैंने उन्हें बहुतसी बातें समझाई और उनको कहा कि 'श्रीमोतीलालजी भी वैसे ही बडे बुद्धिमान् प्रसिद्ध वकील और बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं एवं सब बातोंमें बडे कुशल हैं। इसलिये हमारे केसमें कोई त्रुटि न आने पावेगी। और सामनेकी पार्टीकी ओरसे जो श्रीमुंशीजी आ रहे हैं वह भी एक प्रकारसे हमारे हकमें अच्छा ही है। क्यों कि वे स्वयं विद्वान् और इतिहासज्ञ हैं इसलिये फिजूलकी कोई बातोंमें वे अपना समय नष्ट न करेंगे, और हमारी दलीलोंको समझनेकी और उनका वास्तविक उत्तर देनेकी कोशीश करेंगे जिससे हमारा रास्ता जल्दी साफ हो जायगा और हमें उनके साथ झगडनेमें एक प्रकारका आनन्दसा आयगा' इत्यादि।
रातको हम श्रीमोतीलालजीके साथ बैठे और करीब दो बजे तक केसकी बातोंका पुनरावलोकन करते रहे तथा उनको सब प्रमाण समझाये गये । वे बडी शीघ्रतासे अपने नोटस् तैयार करते गये और अनेक नये नये प्रश्न पूछते गये। दूसरे ही दिन कोर्ट में जब सुनवाई शुरू हुई तो श्रीमोतीलालजीने नये ही ढंगसे काम लेना शुरू किया और कमिशनको भी कई नये मुद्दे विचारनेकी सूचना दी। बंबई हाईकोर्टके एक बडे नामी वकील होनेसे तथा कानूनके पारगामी विद्वान् होनेसे उन्होंने कमिशनकी कारवाईकी भी कडी समालोचना करनी शुरू की और कई अवास्तविक और भप्रासंगिक प्रमाणोंको उपस्थित करनेकी इजाजत देकर केसको किस तरह अनावश्यक लंबा चौडा बना दिया गया है इस विषयमें उन्होंने कोई दो घंटे बहस की, जिससे कमिशनके मेंबरोंको भी अपनी कुछ लघुतासी प्रतीत हुई। उन्होंने उस दिन कमिशनको अपने केसके कुछ महत्त्वके मुद्दे सूचित कर दिये जिसमें उन्होंने कह दिया कि हमको अपने केसमें सिर्फ इन्हीं मुद्दोंके विषयमें कहना है और विचार करना है। कार्रवाईके खत्म होने पर शामको जब मकान पर हम लोग आये तो सिंधीजी ठीक प्रसन्नसे मालूम दिये और बोले कि- 'नहीं आदमी तो अच्छा होशियार मालूम देता है और मामलेको ठीक तरह संभाल लेगा ऐसी आशा होती है।' उस दिन रातको फिर हमारी मीटींग हुई जो दो बजे तक चलती रही । श्रीमोतीलालजीने कुछ नये मुद्दे उपस्थित किये जिनके विषयमें कुछ ग्रन्थोंमेंसे प्रमाण खोज निकालनेकी जरूरत थी। दूसरे दिन तो उनको पेश करना था। इसके लिये मुझे सारी रात जगना पडा। मैं अपने कमरे में उन पुस्तकोंको टटोल रहा था और प्रमाणोंको इकट्ठा कर रहा था । मकानमें मच्छड बहुत हो गये थे और वे बडे परेशान कर रहे थे। सिंघीजी तीन बजे उठ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org