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१८० ] भारतीय विद्या
[ वर्ष ३
जुनो अहेवाल मळी आवे छे. तेना छट्टा परिच्छेदमां आ प्रमाणे हकीकत आपीछे
"त्यार पछी भगवान (बुद्ध) आयुष्मान् आनंद प्रत्ये बोल्या : आनंद ! तमे कदाच विचारो के तमारा गुरुनो धर्म हवे लुप्त थई गयो छे, कारण के तमारा आचार्य हवे जीवन्त नथी. आवुं बनी शके खरं. पण आनंद ! तमे ते प्रमाणे कदी नहि विचारता. शीखव्यां छे ते मारा निर्वाण पछी तमने
धर्म अने जे विनय (शिस्त ) में तमने तमारा आचार्य पदनी खोट पूरी पाडशे."
आ वस्तु बुद्धे पोताना निर्वाण पहेलां थोडा ज समय उपर कहीं हती. उपर जणाच्या प्रमाणे पेलां न्रण सूत्रो सूचवे छे तेवा कोई खास प्रवचन विषे तो अहीं कंज कहेवामां आव्युं नथी. महापरिनिब्बान सुत्तन्त प्रमाणे बुद्धे आ विषय उपर आ उक्तिथी विशेष कंई कह्युं ज नथी. कारण के आज सूत्रमां आगळ उपर (६, ५-७ ) ए सम्मिलित साधुओने वारंवार अने आग्रहपूर्वक पूछे छे के कोईने कोई पण प्रसंगोपात शंका होय तो तेणे ते रजु करवी. पण कोई कई पूछ नथी. त्यारे ते पोते अंते कहे छे के :
"आ साधु संघमां, बुद्ध उपर, धर्म उपर, संघ उपर, साधन उपर के साची परिचर्या उपर कोईपण साधुने सहेज पण शंका नथी के भिन्नविभिन्न मत नथी. आ ५०० भिक्षुओमां जे छेलो छे तेने आ धर्ममां दाखल कर्यो छे जेथी एने क्लेश पीडी शके नहि - एने तो ए पोते ज अंकुशमां राखे छे, एने प्रकाश प्राप्ति दृष्टि समक्ष होय छे." आ पछीथी बुद्धनां प्रख्यात अंतिम वचन आवे छे भने तेमनुं निर्वाण थाय छे.
महापरिनिब्बान सुत्तन्तना उपर उतारेला उल्लेख प्रमाणे तो बुद्धे पोते तेमना निर्वाण समये साचा धर्मना तेमना मृत्यु पछीना फैलावा संबंधे पण कोई पण प्रकारनी चिंता दर्शावी नथी. वळी, तेम ज म० प० सु० मां एवं सहेज पण सूचन नथी के महावीरना मृत्यु बाद जैनोनी हीनस्थितिना समाचारथी बुद्धने कोई खास शिस्त पळाववा माटे पगलां लेवानी जरुर जणाई होय - जेथी पोताना संघमां एवांज परिणामो न प्रवेशे. त्यारे ए - जैनोनी अवनतिवाळी बाबत जे एक नरी किंवदंती ज छे अने जे बुद्धना मृत्यु पछी घणे लांबे समये प्रचार पामी हती, तेणे पेलां त्रण सूत्रोनी रचना कारण आयु. कारण के निर्वाणसमयथी ते सूत्रो चोक्कस स्वरूप पाम्यां, त्यां सुधीनां १५० वर्षोथी विशेष समयमां सूत्रोनी एक माळा तेमां उमेराई छे. ५. महावीरना मृत्यु समये जैन धर्मनी स्थिति
जैन परंपरामां तो महावीरना मृत्यु बाद, जेवी बौद्धो आपणने मनावा मागेले तेवी कोई, हीनस्थिति संबंधी कई पण सूचन नथी. महावीरना निर्वाणरूपी बनावे जैनोनी धार्मिक व्यवस्था अने शिस्त उपर कशी नोंधवा लायक असर करी नथी. ए व्यवस्था अने शिस्त साचववानी फरज महावीरना अगियार शिष्योनी - तेना गणधरोनी - हती. ए पोते तो 'केवलिन्' तरीके आवा कोई कार्यभारथी पर हता. जो कोई गणधर मृत्यु पामे तो तेनुं स्थान तेना गणोमांथी सौथी नजीकनो ले. महावीरना मृत्यु समये तो मात्र इन्द्रभूति ( गौतम ) अने सुधर्मन् जीवंता रह्या हता. आमांथी पहेलाए
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