Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
View full book text
________________
वर्ष]
चित्र परिचय [२३७ आचार्योनी बच्चे शुरू थई अने तेओ परस्पर एक बीजाना सांप्रदायिक मन्तव्योन खण्डन-मण्डन पोत-पोताना शिष्यो अने भक्तो आगळ करवा मंडी पड्या. ए चित्रखण्डमां प्रथम जे दृश्य छे ते दि० कुमुदचन्द्रनी सभानुं छे. एमां एक उच्च काष्ठपीठ उपर नग्न खरूपमां दिगम्बराचार्य बेठेला छे. तेमनी सन्मुख तेमनो कोई मुख्य दिगम्बर यतिशिष्य बेठो छे अने तेनी पाछळ बे भक्त गृहस्थो बेठा छे. आचार्यनी पाछळ तेमनो तेवो ज कोई क्षुल्लक शिष्य उभो छे. तेनी बगलमां मयूरपिच्छी छे अने हाथमां एक वस्त्रखण्ड छे जेना वडे ते आचार्यने वातव्यंजन करी रहेलो छे. आचार्यनी मुद्रा उपदेशप्रवण छे अने तेनो भाव खूब उत्तेजक छे. श्रोताओ पण आचार्यना कथनने उत्साह अने आवेग पूर्वक झीली रह्या छे. ए चित्रखण्डमां आचार्यना मस्तक उपर 'कुमुदचंद्रः' अने श्रोताओना मस्तक उपर 'दिगंबरश्राद्धाः' आq परिचयात्मक लखाण पण करेलुं छे.
तेनी पछी वादी देवसूरिनी व्याख्यान परिषदनुं दृश्य छे. ए आचार्य पण एवा ज उच्च काष्ठपीठ उपर श्वेतवस्त्र परिधान करीने बेठेला छे. एमनी सामे एक कोई प्रौढ जणातो शिष्य बेठो छे, जे घणुं करीने पं० माणिक्य छे. तेमनी पासे बे श्रावको बेठा छे. आचार्यनी पाछळ कोई लघु शिष्य उभो छ जेना हाथमा पण वस्त्रखण्ड होई ते सूरिने पवन नांखी रहेलो छे. आ सूरिनी मुद्रा पण तेवी ज उपदेशप्रवण अने भावोत्तेजक छे. मात्र एनी हस्ताकृतिमां जरा वधारे मृदुता अने मुखाकृति उपर वधारे सौम्यभाव बतावेलां छे. एटलं दृश्य तो ए बन्ने आचार्योनुं समान छे. पण देवसूरिनी सभामां एक व्यक्ति उभो छे जे काईक उत्तेजनात्मक संभाषण करतो होय तेम देखाय छे. ए सभाना उपर | श्रीदेवसूरिसमीपे दिगंबरभट्टः पुरः पठति ॥' आq चित्रपरिचायक संस्कृत वाक्य लखेलुं छे, जे उपरथी जणाय छे, के जे व्यक्ति उभेली चीतरी छे ते दिगम्बराचार्यनो भट्ट छे अने ते देवसूरि आगळ कोई वाद-विवादात्मक विषयने लगतुं कांईक संभाषण करी रह्यो छे. ए भट्ट शुं बोले छे तेनुं सरस शाब्दिक चित्र 'मुद्रितकुमुदचन्द्र'नाटकना प्रथम अंकमां आपेलुं छे. जिज्ञासुए त्यांथी जोई लेवू. अहिं ते आपवानो अवकाश नथी.
४ चित्रप्लेट (ई)नां चित्रो, ए पट्टिकानी अन्दरनी बाजूनी चित्रावलिनां छे. आशापल्लीमां चाली रहेली, उपर सूचव्या प्रमाणेनी स्पर्धाना परिणामे, बने आचार्यो बच्चे एवं ठरे छे के तेमणे पाटणमां सिद्धराजनी राजसभामां शास्त्रार्थ करवो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/108e55c2f64373e6300436cf56303055b15fff7f6b7e1bba102b62a60ad54173.jpg)
Page Navigation
1 ... 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408