Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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२४०] भारतीयविद्या
[तृतीय ए पछीना चित्रखण्डमां, दिगम्बराचार्य पाटणमां राजाना अन्तःपुरमां, पणुं करीने राजमाताने मळवा जवा इच्छे छे, पण द्वारपाळ तेमने रोके छे, तेनुं दृश्य छे. ते पछी राजाना अन्तःपुरनुं दृश्य छे के जेमां राजराणीओ जेवी देखाती बे भव्याकृति स्त्रियो बेठेली छे, अने परस्पर वार्तालाप करी रही छे. आ दृश्यनो भाव ए छे केसिद्धराजनी माता मयणल्ला देवी दक्षिणनी राजकुमारी हती अने तेनो पितृपक्ष दिगम्बर संप्रदाय तरफ पक्षपात धरावतो हतो. कुमुदचन्द्राचार्य पण ए दक्षिणदेशना ज वासी हता अनेतेथी तेमना तरफ राजमातानो भक्तिभाव हतो. तेथी दिगम्बराचार्य, राजमाताने खानगी रीते मळवा माटे अने पोताना पक्षनो विजय थाय तेवी कोई गोठवण करवानी सूचना आपवा माटे, पाछला दरवाजेथी अन्तःपुरमा जवा इच्छे छे; पण शस्त्रधारी ड्योढीवान् तेमने पाछा वाळे छे. द्वाररक्षकनी जवानी मनाई सूचवती मुखमुद्रा खूब उत्तेजित अने सख्ताई साथे निषेध बतावतो जमणो हाथ खूब टटार देखाय छे. पाछा वळेला नग्नाचार्य तेनी सामे आर्जव दृष्टिथी विनम्र हाथवडे कांईक कहेता अने उतावळे डगले चाली जता बतावेला छे. अन्तःपुरमां बेठेली बे स्त्रियो कदाच राजमाता अने राजराणी होय, तेम जणाय छे.
पश्चिम भारतनी चित्रकळाना इतिहासमां आ पट्टिकाओनां चित्रो आपणने एक महत्त्वना प्रकरणनी मूल्यवान् सामग्री पूरी पाडे छे.
ताडपत्रीय पुस्तकोनां केटलांक पत्रो चित्रांक (१)थी ते (५) सुधीनां चित्रो जेसलमेरमां आवेलां ताडपत्रीय पुस्तकोनां केटलांक आद्यन्त पानाओनी प्रतिकृतिओ बतावनारां छे, जेमनो संक्षिप्त परिचय आ प्रमाणे छे. । ५ चित्रांक (१) ए जिनभद्रगणि विरचित विशेषावश्यक भाष्यनी प्रतिनां छेल्लां पानाओनी प्रतिकृति छे. ए प्रतिना विषे में प्रस्तुत ग्रन्थमां ज, भाष्यकार जिनभद्रगणिना समयनी चर्चा करनारो जे खास लेख लख्यो छे तेमां विगतथी वर्णन आप्युं छे (जुओ पृ० १९२). मारा मत प्रमाणे, आपणा पुस्तक भण्डारोमा जेटलां ताडपत्रीय पुस्तको मारा अवलोकवामां आव्यां छे ते बधामा, आ प्रति सौथी जूनी होय तेम लागे छे. एनां पानां पण पातळां अने वधारे श्लक्ष्ण होई ऊंची जातनां ताडनां छे. में लेखमां जे बे गाथाओ आपेली छे ते ए चित्रना सौथी नीचेना पृष्ठमां आवेली छे.
६ चित्रांक (२) ए प्रतिकृति, वर्द्धमानसूरिकृत 'उपदेशपदटीका'नी एक सुंदर प्रतिनां आद्यन्त पानाओनी छे. ए प्रति अजमेरमां, संवत् १२१२मा
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