Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
View full book text
________________
चित्र परिचय [ २३९
- ४ छत्र धरनारा
गान्धारध्वनिगीतपीतहृदये नृत्यत्कुरङ्गेक्षणावर्गाक्षिप्तजनेक्षणे परिलसद्वादित्रनादोदये । आरूढा हसितामरेश्वरगृहच्छायापथे सद्रथे मूर्तिस्तीर्थ करस्य दुःखमथनी जाता सुखे सम्मुखी | ॥ एनी नीचेनुं बीजुं चित्र, आचार्य कुमुदचन्द्रना प्रयाणनुं दृश्य बतावे छे. दिगंबराचार्य पालखीमां बेसीने पाटण तरफ जवा नीकळ्या छे. एमनो अनुचर वर्ग ठीक ठीक मोटो छे. ३ - ४ जण पालखी उचकनारा छे, ३ छे. आगळ बे सुभटो चाली रह्या छे जेमना हाथमां ढाल अने तलवारो छे. सौथी आगळ मूंगळ वगाडतो अनुचर चाली रह्यो छे, जेना श्रवणथी लोको समजी शके के कोई मोटा धर्माचार्यनी सवारी आवी रही छे. तेनी आगळ साबरमती नदीनो देखा बतावेलो छे. कारण के आशापल्लीथी पाटण जतां प्रथम ज ए नदी ऊतरवी पडे छे. नदीना सामे कांठे, रस्ता उपर वडनुं मोटुं घटादार वृक्ष आवेलुं छे जेना थडमां चूनानो पाको चोंतरो बांधेलो छे. दिगंबराचार्यनी सवारी गामना दरवाजामांथी बहार नीकळीने जेवी ए स्थळ पासे पहोंचे छे के त्यां आगळ ऊंची फणा करीने बेठेलो एक मोटो काळो नाग तेमने दृष्टिगोचर थाय छे. आचार्यना अनुचरो आ अपशकुन जोई मनमां खिन्न थाय छे अने एक बीजाना मों सामुं निःशब्द भावे जोई रहे छे. आचार्य पण ए अपशकुन जोई मनमां
उद्विग्न जेवा ई जाय छे. चित्रकारे तेमना मुख उपर, ए उद्वेगनो आछो भाव घणी मार्मिकताथी आलेख्यो छे. खूब आधे जोती एमनी आंखो बतावी रही छे के, ए जाणे कांईक भावी कुशंकानी झांखी करी रह्या छे. एमना अनुचरो आचार्य कहे छे के
स्वामिन् ! मार्गगमनभङ्गगोऽयं भुजङ्गमः ।
वर्ष ]
अर्थात् - आ भुजंग मार्गमां गमनभंगनूं सूचन करे छे. कुमुदचन्द्र जाणे एनी उपेक्षा करता अने बधाने धैर्य धारण करावता कृत्रिम हर्ष साथ कहे छे के - अगम्यो भुजङ्गानां विनतानन्दनः कुमुदचन्द्रः । पार्श्वपरमेश्वर शिरोऽलङ्कारस्य हि भुजङ्गपुङ्गवस्य गोत्रिणां दर्शनमपि विपुलं मङ्गलम् । तदलं विलंबेन ।
अर्थात् - आ विनतानो पुत्र कुमुदचन्द्र भुजंगोने अगम्य छे. तेम ज भुजंग ए तो भगवान पार्श्वनाथना मस्तकना एक आभूषण समान छे अने आपणे तो ए भगवानना उपासको छीए; एटले आपणने तो ए भुजंगनुं दर्शन उलटं मंगल करनारुं छे. माटे विलंब वगर आगळ चालता रहो.
: जुओ, मुद्रितकुमुदचन्द्रप्रकरण, पृ० १८. १ जुओ, मुद्रित कुमुदचन्द्रप्रकरण, पृ० २४.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 401 402 403 404 405 406 407 408