Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 402
________________ २३८ ] भारतीय विद्या [ तृतीय अने पोतपोतानी विद्याशक्तिनो परिचय आपी राजा पासेथी जयापजयनां प्रमाणपत्रो मेळवावा. ए निर्णय प्रमाणे बन्ने आचार्यो ज्यारे पोतपोताना परिवार साथे आशापलथी पाटण जवा प्रयाण करे छे, ते वखतनां दृश्यो आ चित्रावलिमां अंकित करवामां आव्यां छे. एमां उपरना चित्रखण्डमां, देवसूरिना प्रयाणनुं दृश्य बतावेलुं छे. पाटणमां, सिद्धराजनी सभामां, कुमुदचन्द्राचार्य साथे जे वाद-विवाद थाय तेमां मनो विजय थाय ए माटे आशापल्लीना जैन संघे शुभ शकुनोनी गोठवण करी राखी हती. देवसूरि ज्यारे मकानमांथी बहार नीकळे छे त्यारे, तेमना मुख अगाळथी भव्य जैन रथयात्रा पसार थाय छे जेमां एक सुन्दर रथमां जिनमूर्तिने बेसाडी तेनी आगळ नृत्य, गीत, वादित्र विगेरेना आनन्दोल्लासनी उमदा गोठवण करवामां आव छे. देवसूरि उत्साह भरेला पगलां मांडी रह्या छे. तेमनो देह खूब कदावर अने हृष्टपुष्ट छे. आंखोमां ऊंडुं गांभीर्य अने मुखपर प्रसन्नता प्रसरेली छे. बे मोटा भक्तो विकसित वदन अने उत्तंभित हस्तमुद्राथी अभिनन्दन आपी रह्या छे. ते बधानी चरणगतिमां धसमसतो वेग अने मुखाकृतिमां थनगनतो उत्साह बहु ज स्पष्ट रीते बताववामां आव्यो छे. सूरि अने श्रावकोनी आगळ एक नर्तक मंडळ चाली रधुं छे, जेमां बे मृदंगिया अने बे नर्तकियो छे. एमां एक नर्तकी अत्यन्त भावभंगीवाळु नृत्य करी रही छे अने बीजी कोईएक जातनुं वार्जित्र वगाडी रही छे. नर्तकीनुं सुन्दर स्तन - मंडळ ए ज अजन्ताशैलीनुं उन्नत स्वरूप बतावी रह्युं छे. अङ्गोपाङ्गना मरोड अत्यंत भावाभिव्यंजक अने वेगपूर्ण छे. मुखमुद्रा सुस्थ अने आंखो रसनिमग्न थएली छे. आ जातनां केटलांक अन्यान्य पुस्तकीय चित्रोमां, आंखोनी जे बेडोळ आकृतियो आलेखवानी विकृत रूढि पडी गएली जोवामां आवे छे, ते आपकानां चित्रोमा बिल्कुल देखाती नथी. नर्तक मंडळनी पाछळ जिनमूर्तिवाको शिखरबद्ध सुन्दर काष्ठरथ छे जेने पुरुषो अने युवको खूब उत्साहथी खेंची रह्या छे. केटलाक युवको मूंगळ अने वांसळी गाडी रह्या छे. आवा शुभ शकुन पूर्वक थएला प्रयाणथी देवसूरिनो समुदाय पोताना पक्षना भावी विजयनी संपूर्ण श्रद्धा सेवतो उत्साह पूर्वक पाटण तरफ प्रयाण करे छे. मुद्रित कुमुदचन्द्रमां आ भाव व्यक्त करनारुं नीचेनुं सरस संस्कृत पद्य मळे छे जे ए चित्रनी संपूर्ण अभिव्यक्ति प्रकट करे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 400 401 402 403 404 405 406 407 408