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२३६] भारतीय विद्या
[तृतीय नयतत्त्वलोकालंकार नामे जैन तर्कशास्त्र विषयक प्रौढ ग्रन्थनी तेमणे रचना करी हती जेनी स्याद्वादरत्नाकर नामनी अतिविशद टीका विद्वानोमां बहु प्रसिद्ध छे.
वि० सं० ११८१ नी सालमां, पाटणमां, सिद्धराजनी राजसभामां-तेना ज प्रमुख पणा नीचे-ए आचार्यनो, दिगम्बर संप्रदायना एक एवा ज बहु प्रसिद्ध विद्वान् आचार्य कुमुदचन्द्र साथे, श्वेताम्बर - दिगम्बर संप्रदाय वच्चेना मतभेदोनी अमुक मान्यता विषये, परस्पर एक निर्णायक वाद-विवाद गोठवायो हतो जेमा वादी देवसूरिनो विजय थयो हतो. 'प्रभावकचरित्र', 'प्रबन्धचिन्तामणि', 'चतुरशीति प्रबन्ध संग्रह' विगेरे जैन ऐतिहासिक प्रबन्ध ग्रन्थोमां, ए आचार्यनो सुविस्तृत इतिहास उपलब्ध थाय छे अने तेमां ए वाद-विवाद अंगेनी हकीकत पण विस्तार साथे आलेखेली मळे छे. ए उपरान्त, ए ज प्रसङ्गने अनुलक्षीने यशश्चन्द्र नामना एक समकालीन कविए 'मुद्रितकुमुदचन्द्र' नामना सुन्दर नाटक प्रकरणनी पण रचना करी छे जेमा ए हकीकतनुं बहु ज तादृश वर्णन आपवामां आवेलं छे.
प्रायः एज नाटकगत वस्तु प्रस्तुत पट्टिकानी चित्रावलिमां क्रमपूर्वक चित्रित करवामां आवेली छे. मूळ ए पुस्तकनी आवी बे पट्टिकाओ होवी जोईए, परंतु मारा जोवामां त्यां एक ज पट्टिका आवेली. आ उपलब्ध पट्टिकामां, ए ऐतिहासिक प्रसङ्गनो मात्र पूर्व भाग चित्रित थएलो मळे छे. उत्तर भाग एवी बीजी पट्टिकामां होवो जोईए. आ पट्टिकाओ वादी देवसूरिनी कोई विशिष्ट ग्रन्थ रचनावाळा पुस्तकनी-के जे कदाचित् स्याद्वादरत्नाकर ज होय- होवी जोईए, अने ते पुस्तक तेमना खकीय ज्ञानभण्डार माटे तैयार करवामां आवेलं होवू जोईए. ए चित्रावलि सूचित करे छे, के ए प्रसङ्गना पछी तरत ज ५-७ वर्षनी अंदर ज आ चित्राङ्कण थएडं हशे. ‘एटले सिद्धराजना समय दरम्यानमुंज आ एक चित्रालेखन छे एम कही शकाय.
३ चित्रप्लेट (इ) उपरनुं चित्र, ए पट्टिकानी उपरनी बाजूमां चित्रित श्योमांनो मध्यस्थित चित्रखण्ड छे. एमां दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्र अने श्वेताम्बर वादी देवसूरिनी व्याख्यान सभानां दृश्यो अंकित करवामां आव्यां छे. आशापल्ली, एटले के वर्तमान अमदाबादनी जग्याए आवेलुं प्राचीन स्थान जेने पाछळथी कर्णावती पण कहेवामां आवतुं-त्यां नेमिनाथना मन्दिर पासे आवेला बे जुदां जुदां धर्मस्थानोमा ए श्वेताम्बर अने दिगम्बर बन्ने आचार्यो एक साथे आवी वस्या हता. वादविद्याकुशळ धर्माचार्योमां होय छे तेवी विद्याविषयक स्पर्धा, कोई प्रसङ्गवश, ते बंने
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