Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 398
________________ २३४] भारतीय विद्या [तृतीय कोई मोटुं अने महत्त्वनुं पुस्तक लखावीने भेट कर्यु हतुं, जेना उपरनी, आ एक सुन्दर चित्रालंकरण करवामां आवेली पाटली छे. संभव छे के आमां आलेखेला स्त्री-पुरुषो, ए पुस्तक भेट करनार श्रावक कुटुंबनी मुख्य व्यक्तिओज होय. मूळ कया पुस्तकनी आ पट्टिका हती ते जाणवायूँ हवे कशुं साधन नथी. नहिं तो कदाचित् ए पुस्तकनी प्रशस्तिमांथी एना दातानो परिचय विगेरे पण मळी शके. भण्डारोनां पुस्तकोमा गमे ते पुस्तकनी पट्टिका गमे ते पुस्तक साथे बांधी देवानी अव्यवस्था सेंकडों वर्षोथी चाली आवे छे, एटले एवी पट्टिकाओनो खास इतिहास आपणे हवे मेळवी शकीए तेम नथी. - आपणा देशनी प्राचीन चित्रकळाना इतिहासनी दृष्टिए आवी पट्टिकाओ घणी अगत्यनी अने मूल्यवान् छे. आ अने आ पछी एवी बीजी पट्टिकानां जे चित्रो अहिं प्रकट करवामां आव्यां छे, ते एक रीते आपणा देशना-खास करीने गुजरात-राजस्थानना- चित्रालंकरणोवाळां उपकरणोमां सौथी प्राचीन नमूनारूपे उल्लेखी शकाय तेवां छे. - चित्रखण्डोमां आलेखेला श्रीजिनदत्त सूरि जैन श्वेताम्बर संप्रदायना बहु प्रसिद्ध विद्वान् आचार्य छे. एमनो जन्म गुजरातना धोलका नगरमां वि० सं० ११३२मां थयो हतो. तेओ दिगम्बर संप्रदायानुयायी वाछिग नामना वैश्यना पुत्र हता. सं० ११४१ मां तेमने श्वेतांबर जैन यतिपणानी दीक्षा आपवामां आवी हती अने सं० ११६९ मां चित्रकूट (मेवाडना सुप्रसिद्ध चित्तोड) मां आचार्य पद प्राप्त थयु. सं० १२११ ना आषाढ वदि ११ ना दिवसे, अजमेरमां, चाहमान विश्वलदेवना राज्य समय दरम्यान, तेमनो खर्गवास थयो. तेमणे पोताना जीवनकाल दरम्यान गुजरात, मारवाड, मेवाड, वागड, मालवा अने सिन्धना प्रदेशमां सतत परिभ्रमण कयु हतुं. मरुस्थळीमां आवेला विक्रमपुरमा श्रेष्ठी देवभद्रे बन्धावेला जैन मन्दिरमा महावीरनी एक भव्य प्रतिमानी तेमणे प्रतिष्ठा करी हती. संभव छे के आ चित्रपट्टिकामां ए ज प्रतिष्ठा - प्रसंगनुं दृश्य आलेखेळ होय. कारण के एमां आलेखेला जिनमन्दिरमा खास महावीरनी मूर्तिनुं आलेखन छे अने सूरिसन्मुख स्थापित स्थापनाचार्य उपर पण 'महावीर 'नु नाम लखेलुं छे. कदाचित् ए ज देवधरे आ पट्टिका साथेनुं कोई पुस्तक पण लखावीने सूरिने समर्पित कर्यु होय अने तेथी ए पट्टिकामा उक्त प्रसंगना स्मारकरूपे आ चित्रांकण करवामां आव्यु होय. जैन संप्रदायमां आवा प्रसंगोनां निमित्ते पुस्तकादि लेखन अने चित्रपट्टिकादिना आलेखननी प्रवृत्ति घणा प्राचीन समयथी चाली आवे छे... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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