Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 367
________________ अंक १] शृङ्गारशत [२१३ आ रीते शतकना रूपमा गोठवी दीधां हशे एनी कशी उचित कल्पना करवानुं सविशेष प्रमाण आमां उपलब्ध थतुं नथी. प्रारंभना ३८ पद्योमा सामान्य नायिकानुं वर्णन छे अने ते पछी षड्ऋतुनुं वर्णन प्रारंभ थाय छे. एमां सौथी प्रथम वसन्तऋतुनुं वर्णन छ जे ६१मां पधमां पूरं थाय छे. ते पछी ग्रीष्मवर्णन पद्य ६९ सुधी, वर्षाकाल वर्णन पद्य ८२ सुधी, शरद्ऋतु वर्णन पद्य ८८ सुधी, हेमन्तऋतु वर्णन पद्य ९३ सुधी अने अन्ते शिशिरऋतुवर्णन पद्य १०५ मां पूर्ण थाय छे. कविनो भाषा उपर खूब सारो अधिकार जणाय छे. शब्दोनी योजना अने भावोनी व्यञ्जना सुंदर रीते करवामां आवेली छे. ए समयना कवियोनी प्रियरूढि जे प्रासानुबन्ध कविता तरफ विशेष आकर्षणवती हती तेनुं दर्शन पण आमां स्थळे स्थळे आपणने सारी रीते थाय छे. जेम के लडसडी कडि मोडीय माल्हती, गजगतिइं चमकंतीय चालती. कुरल कजल कोमल बांहडी, हृदय नारि न वीसरिसिइ घडी । (पद्य ४) हिव हसह विहसइ उरि उल्हसइ, मुखि ससइ निससइ उरि उद्वसइ. क्षणु रोअइ न सुअइ विरहाकुली, रमणि झायइ थायइ आकुली । (पद्य ११) नीली चोली हाथि ले पानकोली, चाली भोली चीतवी कान्तकेली. भाविइं भेली चीतवी सा महेली, सेरी पेली स्वामिसिउं रात्रिवेली । (पद्य ३५) आवी जातना शब्दोना शणगार साथे भावनी भभक पण ज्यां त्यां सरस रीते हृदयंगम थाय छे. आशा छे के जूनी गुजराती कविताना अभ्यासियोने आना अध्ययनमा आकर्षक रस उत्पन्न थशे. -जिनविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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