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२३० ] भारतीय विद्या
[ वर्ष ३
परथी जणाय छे के ए आजड भाण्डशाली पार्श्व चन्द्रनो पुत्र हतो अने भद्रेवरसूरिनो उपासक हतो. † पोतानी टीकामां एणे हेमचन्द्राचार्यनो उल्लेख करेलो होवाथी, ए हेमचन्द्रसूरि पछी थयो छे एटलं सिद्ध थाय छे. पण ताडपत्रनी स्थिति अने कृतिनी रचना आदिनो विचार करतां लागे छे के एनो प्रादुर्भाव हेमचन्द्राचार्य पछी तरत ज - एटले के बहु बहु तो ४० - ५० वर्षनी अन्दर ज - होवो संभवे छे.
सरस्वतीकण्ठाभरण, प्रकाश २, पद्य १७ ना विवेचनमां, पैशाची भाषानो प्रयोग केवी जातना पात्र माटे करवो तेनो विचार करवामां आवेलो छे अने तेमां उदाहरणरूपे जे गाथा उद्धृत करवामां आवी छे, ते ते ज गाथा छे, जे हेमचन्द्राचार्ये प्राकृतव्याकरणमां, उद्धरेली छे अने जे अमे उपर आपेली छे. स. कं. नी पंक्ति आ प्रमाणे छे -
नात्युत्तम पात्रप्रयोज्या पैशाची शुद्धा । यथा
पनमत पनअप कुप्पितगोली चलनग्गलग्गपडि बिम्बम् । तससु नहतपनेसु एआतसतनुधलं लुद्दम् ॥
निर्णयसागर प्रेस तरफथी प्रकट थएली स. कं. नी रामसिंहनी वृत्तिमां ए पंक्तिनी व्याख्या विगेरे आपेली छे, परंतु ए गाथा मूळ क्यांनी छे एनुं कशुं सूचन नथी करेलं. आजडे आ गाथानी व्याख्या करतां लख्युं छे के“बृहत्कथायामादिनमस्कारोऽयम् । अत्र पैशाची भाषा इति । "
अर्थात् - 'आ बृहत्कथानो आदि नमस्कार छे. आनी भाषा पैशाची छे.'
आ ते आज स्पष्ट रीते प्रस्तुत गाथाने बृहत्कथाना आदि नमस्काररूपे लखे छे, ए परथी जणाय छे के एनी पासे ए बाबतनो कोई स्पष्ट पुरातन आधार होवो जोइए. गाथागत वस्तु उपरथी पण ए तो स्पष्ट ज समझाय छे के ए कोई प्रसिद्ध ग्रन्थ के कृतिनुं नमस्कारात्मक कथन होवुं जोइए. अने तेथी ज, पिशल जेवा समर्थ मर्मविद् भाषाशास्त्रज्ञे ए माटे उक्त अनुमान कर्तुं हतुं. आजडना आ उल्लेखथी हवे आपणने ए माटेनो प्रमाणभूत आधार पण मळी आव्यो छे.
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बीजा प्रकाशना प्रारंभमां बे पद्यो आपेलां छे जेमां पहेलामां शान्तिनाथजिननी स्तुति अने बीजामां पोताना गुरु भद्रेश्वरसूरिनी स्तुति करेली छे. ए बीजुं पद्य आ प्रमाणे छे - श्रेयांसि प्रतनोतु नः शुचियशोमुक्ताफलालंकृतः
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श्रीमान् दुर्मदवादिकुञ्जरहरिर्भद्रेश्वराख्यो गुरुः । दिन प्रतिमोऽपि यस्य चरणेनालंकृतं सर्वतः प्रेक्ष्याक्रामति जैनदर्शनवनं नाद्यापि कोऽपि क्षितौ ॥
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