Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 385
________________ आजडे करेली 'प्राकृतभाषा'नी व्याख्या 'प्राकृत' ए शब्दनी व्याख्या हेमचन्द्र आदि प्रसिद्ध वैयाकरणोए जे आपेली छे ते भाषाविज्ञानना सिद्धान्त प्रमाणे संगत थती नथी, ए मत हवे सुप्रतिष्ठित थई गयो छे. ए वैयाकरणोना कथन प्रमाणे प्राकृतभाषानी मूळ प्रकृति एटले के उत्पत्ति- योनि संस्कृत छे. 'प्रकृतिः संस्कृतं तत्र भवं तत आगतं वा प्राकृतम्' एवी ए वैयाकरणोनी व्याख्या छे. ए व्याख्या सुसंगत नथी. कारण के संस्कृत ए शब्द ज पोते एवं सूचवे के संस्कारयुक्त-व्याकरणना नियमोथी संस्कार पामेली-भाषा ते संस्कृत. एनाथी उलटुं, प्राकृत शब्द पोते ज एवो अर्थ सूचवे छे के प्रकृति एटले लोकखभावपरिणत-खाभाविक रीते ज लोकोमा जे भाषानो व्यवहार प्रवृत्त थतो होय -ते प्राकृत. जूना ग्रन्थकारोमां, मात्र रुद्रटना व्याख्याता नमिसाधुए 'प्राकृत' शब्दनो आ भाव व्यक्त करतो अर्थ कर्यो छे अने ते आधुनिक भाषाशास्त्रना सिद्धान्तने वधारे मळतो आवे छे. तेणे आपेली प्राकृतनी व्याख्या, वधारे संगत रीते वस्तुस्थितिने सूचवनारी होई, भाषाविकासना इतिहासने बन्धबेसती आवे छे. मारा विद्वान् मित्र सुप्रसिद्ध भाषाशास्त्रविशारद डॉ. एस्. एम्. कत्रे (एम्. ए. पीएच्. डी; डायरेक्टर, डेक्कन कॉलेज पोष्ट - ग्रेज्युएट एन्ड रीसर्च इन्स्टीट्युट, पूना), 'भारतीय विद्या स्टडीज्'मां हमणां ज प्रकट थएला, 'प्राकृत लेंग्वेजीज्' नामना पोताना नूतन पुस्तकमां ए संबंधमां लखतां जणावे छे के "It is, however, to Namisādhu, the famous commentator of Rudrata's Kāvyālamkāra, that we owe a surprisingly modern definition of the word prākrta. According to him, the basis' or prakrti of these languages or dialects is the natural language of the people' uncontrolled by the rules of grammarians, the common medium of expression and intercourse, as opposed to Sanskrit, the refined language of the gods and the learned. It follows, therefore, that the word prākrtu comprises the natural unrefined dialects of the common people and their descendants, forming one family of languages." p. 2 . नमिसाधुए आपेली प्राकृतनी व्याख्या आ प्रमाणे छ"प्राकृतेति-सकलजगजन्तूनां व्याकरणादेरनाहितसंस्कारः सहजो वचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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