Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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गुणाढ्य कविनी बृहत्कथानो आदि श्लोक
गुणाढ्य कविनी सुप्रसिद्ध बृहत्कथा जे पैशाची भाषानी एक सर्वोत्कृष्ट कृति हती तेनुं मूळ हजी सुधी क्याए उपलब्ध नथी थयु. तेम ज ए कथामार्गे कोई एकाधु पद्य पण एनी मूळ भाषामां कोईने दृष्टिगोचर नथी थयु, जेथी ए कृतिना भाषाखरूपनो यत्किंचित् पण आभास विद्वानो निश्चितरूपे मेळवी शके. पैशाची भाषाना स्वरूपनुं दिग्दर्शन हेमचन्द्राचार्य आदिना प्राकृत व्याकरणोमां जे कांई कराववामां आवेलुं छे ते परथी ज आपणने ए भाषाना खरूप विषे यत्किंचित् ज्ञान मळी शके छे. ए व्याकरणोमां आपेला नियमोना आधारे रचाएली केटलीक क्षुद्र स्तुति - स्तोत्रादिक जेवी कृतियो जोवामां आवे छे खरी, परंतु तेमनी भाषा कृत्रिम खरूपनी होवाथी अने समयनी अपेक्षाए ते अर्वाचीन होवाथी साहित्यनी दृष्टिए तेनी कशी मूल्यवत्ता नथी. मृच्छकटिकादि केटलांक नाटकोमा पैशाची भाषानो क्यांक क्यांक जे वाक्यप्रयोग करवामां आवेलो छे तेज मात्र साहित्यनी दृष्टिए महत्त्वनो गणाय एवं ए भाषानुं अत्यल्प साहित्य आपणने दृष्टिगोचर थाय छे. बृहत्कथा उपरान्त पैशाची भाषामां बीजी पण अनेक कृतियो होवी जोइए, कारण के राजशेखरादि आलंकारिकोए पैशाची अर्थात् भूतभाषाना साहित्यने पण अपभ्रंशादि भाषाना वाङ्मयनी समकक्षाए ज स्थान आपेलु छे. परंतु दुर्भाग्ये आपणने हजी सुधी ए भाषासाहित्यनी कोई विशिष्ट रचना प्राप्त थई नथी. हेमचन्द्राचार्ये पोताना प्राकृतव्याकरणना ८ मा अध्यायमां, पैशाचीना प्रकरणना केटलांक सूत्रोमां थोडाक वाक्यांशो आपेला छे अने चूलिका-पैशाचीमा '' अक्षरना स्थाने 'ल' थाय छे एना उदाहरण तरीके नीचेनी बे गाथाओ आपेली छे.
पनमथ पनय-पकुप्पित-गोली चलनग्ग-लग्ग-पति-बिम्ब । तससु नख-तप्पनेसुं एकातस-तनु-थलं लुई ॥१ नच्चन्तस्स य लीला-पातु-क्खेवेन कम्पिता वसुथा।
उच्छल्लन्ति समुदा सइला निपतन्ति तं हलं नमथ ॥२ हेमचन्द्राचार्यनी उदाहरणो आपवानी विशिष्ट शैली उपरथी आपणे जाणी शकीए छीए के तेमणे उद्धरेला वाक्यांशो अने खास करीने आ बे गाथाओ पैशाची भाषानी कोईक प्रसिद्ध कृतिमांथी लीधेली होवी जोइए. परंतु तेमणे ए विषेर्नु कशुं सूचन कयुं न होवाथी, कया ग्रन्थनी आ गाथाओ छे तेनी स्पष्ट
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