Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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भक १]
लल्लभाटकृत सिद्धराय जेसिंघदे कवित्त [२२७ डरति इंद्र डगमगति चंद्र कलमलति दिवायर। चलति पृथ्वी डोलंति मेरु झरझंषति सायर । सेससीस सलवलति दढतिदढ कुंभ कडकति । अनल विनल थिय इक पृथ्वीपट पलय ढलकति । षडहडति दुग्म भूराउ सुणि, सुरनर फणिमणि इक्क हूय । मम गहसि म गहि म म गहि म गहि, म गहि मुच्छ जेसिंघ तुअ॥५ जुते देव चालक नरिंद भड भंडणि बहिया । ति सवि ईल संगहवि गुंथि गलि मालइ गहिया । पेषि माल सिरिधुणी अमी ससिहर विच्छुडिया। सु जड कडत्रइ ग्रही बंभ केसरि गडिअडिया। विडरिय वृषभ जेसिंघ सुणि, सुकविरयण सच्चउ चवइ । हडहड करंति कैलास सहु, हह करंति संकर भमइ ॥६ मूसा बिल खणि मरइ भूमि भोगवइ भुयंगम । हलि खडि मरइ बइल्ल हरिय जव चरइ तुरंगम । सूम संचि करि मरइ वीर विद्रवइ विवहपरि। पंडित पढि गुणि मरइ मूढ बोलइ रायां घरि । सुणि सिद्धराय गुजर धणी, करां वीनन्ती कर्णसुअ । हम पहुंगुणु पावइ अवर, का परीष जेसिंघ तुअ ॥ ७ घीस त्रीस चालीस साठि सत्तरि सतहत्तरि । भाटइ आणी सुंपि दिद्ध केकाण सबल वरि । आठ ढालि दस ढोल वीस नेजा इक दंडह । छत्र ढलवि गय गुडवि दिद्ध जेसिंघ नरिंदह । मारिउ दलिद दस लाष देइ, णिउ पाय अंकुस कीयउ । हडहडवि भट्ट तारइ हस्यउ, सिद्धराय इत्तउ दीयउ ॥ ८
आ पद्य माटे उपदेशतरंगिणीमां लख्यु छ के- 'एकदा सभायां सिद्धराजेन स्वमूंछायां करगृहीतायां आमकविः प्राह' -(अर्थात् एक वखते सिद्धराज सभामां बेठो पोतानी मूंछ ऊपर हाथ फेरववा लाग्यो, सारे आम कविए ते प्रसंगे आ पद्य कयु). उपदेशतरंगिणीमां आनो पाठ नीचे प्रमाणे छे.
डरि गइन्द डगमगिअ चन्द करमिलिय दिवायर । डुल्लिय महि हल्लियह मेरु जल झंपिअ सायर । सुहड कोडि थरह रिय क्रूर कूरंम कडकि। अनलविनल धसमसिय पुह वि सहु प्रलय पलहिय । गति गयण कवि आम भणि, सुरमणि फणमणि इक्क हुआ।
मा गहिहि म गहि म म गहि म गहि, मुंच मुंछ जयसिंह तुह ॥ उपर आपेला पाठ करतां आ पाठनी भाषा वधारे प्राचीन छे अने अर्थ दृष्टिए पण वधारे शुद्ध छे.
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