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शृङ्गारशत शृङ्गाररसवर्णनमय एक प्राचीन गुजराती काव्य
अहिं नीचे आपवामां आवेलुं शृङ्गारशत नामनुं गुजराती काव्य, अमदाबादनिवासी पं० श्रीअंबालाल प्रे० पासेथी प्राप्त थयुं छे. ए काव्यनो कर्ता कोण छे ते कांई एमांथी जाणवा मळतुं नथी. तेम ज ए कृति कया समयनी छे ए पण जाणवानुं खास साधन प्राप्त नथी. एनी मूळ प्रति ५ पानानी छे अने ते सुन्दर जैन मरोडनी सुवाच्य देवनागरी लिपिमा लखेली छे. प्रतिना अन्ते लिपिकारनो नाम के समय निर्देश करवामां आवेलो नथी तेथी प्रतिनो समय पण चोकस निर्धारी शकाय तेम नथी. परंतु, पानाओनी स्थिति अने लिपिनुं मरोड आदि जोतां मोडामां मोडी सतरमा सैकानी वच्चे ए लखाएली होय तेम लागे छे. एटले के वि० सं० १६०० अने १६५०नी दरम्यान एनो लिपिकाल होय एम अनुमान करी शकाय.
काव्यनो कर्ता कोई जैनेतर कवि होय एम लागे छे. कविता केवल निर्भेळ शृङ्गार रसना वर्णनवाळी छे. जो के जैन यतियोएं पण आ जातनी निर्भेळ शृङ्गाररसपरिपूर्ण काव्यरचना घणी करी छे, परंतु तेमनी रचनाओमां जाण्ये - अजाण्ये पण क्यांक ने क्यांक जैन विचारसरणि अने विशिष्ट शाब्दिक परिभाषानो झोक जरूर देखाई आवे छे. आ कवितामां आवं कशुं क्यांय देखातुं नथी तेथी हुं अनुमानु छं के आनो कर्ता कोई जैनेतर कवि छे.
कवितानी भाषा जूनी छे. लगभग 'वसन्तविलास'नी धाटीनी छे. भाषानुं वळण जोतां एनी रचना वि० सं० १३५०नी अने १४५०नी बच्चे थएली होय तेम लागे छे. 'वसन्तविलास'नीज पद्धतिनुं अने वर्णनानुं अनुकरण करतुं आ काव्य आपणा प्राचीन साहित्यमांनी एक उत्तम कृतिनी उपलब्धि जेवू जणाशे. 'वसन्तविलास'नुं वर्णन ज्यारे वधारे संस्कृतमय एटले पाण्डित्यपूर्ण अने विद्वद्भोग्य छे त्यारे आनुं वर्णन वधारे प्राकृतमय अर्थात् वास्तविक अने लोकभोग्य छे. __'वसन्तविलास'नी रचना फागबन्धना छन्दमां थएली छे त्यारे आनी रचना जुदा जुदा मात्रामेळ तेम ज अक्षरमेळना छन्दोमां करवामां आवी छे. 'वसन्तविलास'मां ज्यारे वसन्तऋतुनुंज प्रधानपणे वर्णन करवामां आव्युं छे, त्यारे आमा छए ऋतुनुं वर्णन करेलु छे. एना प्रारंभमां सामान्य नायिका वर्णन पण सारा प्रमाणमा करवामां आवेलं छे, जे 'सन्देशरासक'नी अनुकृतिनो भास करावे छे.
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