Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
View full book text
________________
भंक १]
भंगार शत [२१९ छइल छेहु सनेहु न खेडिइ।
चरणि लागीय रागीय तेडियइ ।। ५४ करह सुकि अनेकि वधामणां । तुझ कु लेखि देखिय रूसणां । नरु तुहिं कहि नासहि न्हालीइं । इसिउं जाणीइ वाणीइ पालीइ ॥ ५५ सखीय सीखह रोषह सूझवी । रमणि मेलि महेलीय बूझवी । रमइ निब्भर भंभर भोलीया । ललवली रमली रसि घोलीया ॥ ५६
मेल्हि रोसु सखि दोस न दीसइ । सुकिना मुखु वरांसई लीजइ । एकवार अपराध खमीजइ । हिव वसंत रितुराज रमीजइ ॥ ५७
नीरंगि भंगी करती नवोढा । लाजइ घणउं बांह धरी विवोढा । मा मा भणंती सिरि मुड बांध्यउ । सु पुष्पधन्वां तिह बाण साध्यउ॥५८
मुखि रुणझुणइ आंबइ एला लवंगिई संचरइ । कमलि रमली केली मिल्ही वली लवली फिरइ । कुरब दमणइ चांपइ कांपइ अशोकिहि संचरइ ।
भमरु भमतउ सा वासंती वली वलि संभरइ ॥ ५९ लीलावंती कमलवदना कामिनी बांह लागी । रागी मागइ जन नवि गणइ आलिलिंगइ कुरंगी । हासउं हेली म करिसि हिवं हुं न वीनउ अपार ।
साच साचउं मयणु न गिणइ वार वेला विचारु ॥ ६० नवनवीपरि रामति केलवी । मधुर पंचम गीतहिं आलवी। सुरतकेलीय कामिनिस्युं करी । सुजल शैवलिनी हियडइ धरी ॥ ६१
अथ ग्रीष्मवर्णनम् । वसंतु वीतउ हिव ग्रीष्म आवियउ । रागी विशेषज्ञ मन तेउ भाविछ । तपइ घणेरडं करपूरि सूर । सुहाय घणउं शीतल सुछ चीर ।। ६२ लही विचालउं हिव दीह वाधइं । ति रात्रि संकोडि उपाधि साधइ। वेला वहंती रिपु दाउ दीजइ । मांटीपणानी पुण लीह लीजइ ॥ ६३ सलिलु शीतल भूतल पावीइ । पथिक कारणि पर्व भरावीइ । क्षणु रहइ सु महातरु छांहडी । सुष समाधि मनोहर ते घडी ॥ ६४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/1cef060fae3ae7a19b16f7b6cb502d5a34055da6cabdf688a75b91e41adf4786.jpg)
Page Navigation
1 ... 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408