Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 371
________________ अंक १] श्रृंगार शत [२१७ चरणि नेउर केउर बांहडी । करिहिं चूडीय रूडीय मूंद्रडी। हीयइ हारु निगोदरु कांठुली । कडिहिं फालीय बालीय ते मिली ॥ ३५ नीली चोली हाथि ले पानकोली । चाली भोली चीतवी कांतकेली। भाविइं भेली चीतवी सा महेली। सेरी मेली स्वामिसिउं रात्रि वेली ॥ ३६ मधुर वचन भासइ, सयरि संतापु नासइ । दशनि तिमर त्रासइ, स्वास सौरभ्यु वासइ । नयणि मृग निरासइ, हावभाविइं उल्हासइ । रिदयु हरइ हासइ, कांतु नारी विलासइ ॥ ३७ खिणिहिं उपरि आवइ, कामकेली सुखावइ । जघनु घनु नचावइ, कांत लीला रचावइ । पुरुष परि करती, हर्षु हेजइं धरती । दयितु मनु हरंती, नायका सा पनडेती ॥ ३८ अथ वसंतवर्णनम् । आव्यउ वसंत सवि हसंतु मास । वियोगीयारहइं करतु निरास । संयोगीयानी हिव आस पूरइ । सुकामिनी मानिनि मान चूरइ ॥ ३९ पवनु भूतलि शीतलु सांचरिउ । मलयचंदनि नंदनि जे फिरिउ । नवल आसई वासइ कोकिला । विरहिणी धडकई विरहानला ॥ ४० हिव खजूरीय मुरिहिं पूरीइं । सुकरुणी तरुणीजन झूरीइं । कुसमनइ दिसि वासई वासीइं । मलय मारुति सार विकासीइ ॥ ४१ विविध भार अढार वनस्पती । करल कुंपल कोमल मेल्हती । सुमनि सावन भूमि अलंकरी । रुणझुणई भमरा सवि संचरी ॥ ४२ मुन्दार साल सुरसाल प्रियाल साल । हंताल ताल कृतमाल तमाल ताल । पुन्नाग नाग कदली लवली लवंग । मंदार कुंद मुचकुंद सुरंग पूग ॥ ४३ ३.१.२८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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