Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 375
________________ अंक १] शृंगार शत [२२१ अवह मारग पंकिल संकुला । पथिक चंचल चालई आकुला । अहह सा मरिस्यइ मुझ वल्लही । न रहस्यइ विरहानलि सांसही ॥ ७६ झिरिमिरइ महि मेहलि मोकली । सरई सारस अंबरि आकुली। यमुगली बगुली अतिऊजली । करइ पालीय हालीय नेरली ॥ ७७ गगनि जलधराली, वीजुली गुष(ख)जाली । खलहल परनाली, चित्रशाली विशाली । शयनितलि सूंयाली, कामिनी छइ छराली । निज भुज गलि बाली, कांतु पुढइ रसाली ।। ७८ रयणतिमिर काली, शोक संतापु टाली । कुसुमह गलि माली, आंषि इंदीवराली । दशनि तिमिर टाली, हारु वारू मृणाली । मयणु [उ?]रुमराली, तीणि संधइ मराली ॥ ७९ लोअडी लहकती उरि आछी । गुठि चंचलि जिसी जलि माछी। जालफूल धरती करि पाछी । आवि मालिणि म जाइसि पाछी ॥ ८० चमुकलई चलती पगुलां भरइ । लहकडई कडि मोडीय सांचरइ । मुरकलइ हसती हिव हेलवइ । अछइ कोइ जु मानिनि मेलवइ ।। ८१ लिषीइ लेषु सु केतकि पाठवई । सषीय सांनिधि सा बुद्धि आठवइ। भरिहिं भाद्रवडा घण मेहडउ । दयित देहु दहइ नव नेहडउ ॥ ८२ अथ शरदु रितुवर्णनम् । वीतउ वर्षाकालु आसो पहूतउ । हंसा राविइं भाविइ हूंतउ । कहतउ वेला जाणी एउ ऊगिउ अगस्ति । वर्णावर्णि आलवी सार स्वस्ति ॥ ८३ कमलडां विहसई सरिसा घणां । मलिनमा जलु मेल्हइ आपणा । रमणिरंजन पंजन चंचला । तरुण वंचन लोचननी कला ॥ ८४ कलमशालीय बालीय टोहणउं । करइ कंकणगीतिहिं मोहणउं । कुसुम कास विकास विशेषीइ । शरद हासउं आसिउं देषीइ ॥ ८५ रमइ ते नरनारीसिउं मिली । परिमली विमली कुसुमं कली। सुरत संमद सा रतु माचवइ । समयु पामीय कामीय राचवइ ॥ ८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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